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________________ १५५ मुखवस्त्रिका की चर्चा रात्रि बहुत आ गई है, सुबह बिहार करना है, जात्रो शयन करो, मुझे भी निद्रा आती है। ___ गयवर०-पज्यजी महाराज ! मेरी ओर से किसी प्रकार का अविनय व्यवहार हुआ हो तो क्षमा करावें । मैं तो मुँह-पत्ती डबल डरा डाल कर बाँधता हूँ, केवल आपकी आज्ञा से मैंने वादी बन कर तर्क-वितर्क की है। पूज्यजी-मैंने भी तो तेरी बुद्धि और श्रद्धा की परीक्षा के लिये ही पूछा था । अब जाओ, सो जाओ। सुवह विहार कर पूज्यजी क्रमशः जोधपुर पधार गये। २७-संवत् १९७० का चतुर्मास गंगापुर में ... मेवाड़ में गंगापुर एक अच्छा कस्बा है। तेरह-पन्थियों का वहां बहुत जोर-शोर है। स्थानकवासियों के केवल ३५-४० घर हैं, किन्तु वे लोग जब कभी चतुर्मास करवाते हैं, तब ऐसे योग्य साधुओं का ही करवाते हैं, जो तेरह पन्थियों को पराजित करने में समर्थ हों । इस साल गंगापुर वाले पूज्यजी के पास जोधपुर आये तथा चतुर्मास के लिए आग्रह पूर्वक विनती की । इस पर पूज्यजी महाराज ने हमारे चरित्रनायकजी से कहा कि तुम गंगापुर जाकर चतुर्मास करो। गयवरचंदजी ने कहा कि महाराज मैं तो आपकी सेवा में ही रहूँगा; बीकानेर के चतुर्मास के बाद यही मौका मिला है किन्तु पूज्यजी ने जोर देकर कहा कि गंगापुर में चतुर्मास करने वाला और कोई दूसरा साधु मेरे पास नहीं है तेरह--
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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