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मुखवस्त्रिका की चर्चा
गयवर० - पूज्यजी महाराज, आप फरमाते हो कि भाषा के 'पुद्गल लोक के अन्त तक जाते हैं, रास्ते में पर्वत पहाड़ आते हैं तो उनको भी भेद कर पुद्गल चले जाते हैं, तो फिर मुँहपर मुँह पत्ती बाँधने से वे पुद्गल कैसे रुक सकते होंगे ? मेरा तो खयाल है कि कपड़े की तो क्या, पर लोहे की पट्टी हो तो भी पुद्गल नहीं रुक सकेगा। दूसरे, आप यह भी फरमाते हो कि जहाँ थोड़े भी छिद्र हैं, वहाँ वायु काय के असंख्य जीव हैं, तब तो मुँह की पोलार में भी असंख्य जीव हैं और मुँहपर मुँहपती बाँधी हुई होने पर भी मुँह में जवान एवं होट चलने से असंख्य वायुकाय के जीव अवश्य मरते होंगे। फिर मुँहपत्ती दिन भर मुँह पर बंधी रखने का क्या मतलब हुआ ? हां, इससे वायुकाय के जीवों की रक्षा तो नहीं हुई, पर श्लेष्म से असंख्य पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा अवश्य होती है ।
पूज्य — गयवरचंदजी, तुम मूर्खहो, यदि ऐसा ही है तो फिर शास्त्रकारों ने मुँहपत्ती रखना क्यों बतलाया है ।
गवर - मैंने पढ़ा है कि उड़ते हुए मक्खी, मच्छर, पतंगादि सजीवों की रक्षा के लिए मुँहपत्ती रखनो बतलाई है । पूज्य - ऐसा किस शास्त्र में लिखा है ? गयवर—ओघनियुक्ति श्रागम में लिखा है । पूज्य — श्रोघनियुक्ति ३२ सूत्रों में नही हैं ? गयवर - बत्तीस में नहीं, पर ४५ आगमों में तो है । पूज्यजी - अपने तो ३२ सूत्र ही माने जाते हैं न ?
गयवर० - बत्तीस सूत्रों में केवल १४ उपकरणों का नाममात्र बतलाया है; उनका प्रमाण एवं प्रयोजन ३२ सूत्रों में नहीं पर