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________________ आदर्श-ज्ञान १५० बोलने की आज्ञा दिलावें, तो मैं इस विषय में आपसे कुछ वार्तालाप कर सकता हूँ। पूज्यजी-केवल तुम्हारी तर्क-शक्ति बढ़ाने के लिये मैं तुमको इजाजत देता हूँ कि तुम वादी होकर मेरे साथ मुँह पर मुँहपत्ती बाँधने के विषय में चर्चा करो। ___ गयवर०-क्यों पूज्यजी महाराज ! आप घंटों तक जोर से व्याख्यान फरमाते हो, उस समय आपके मुँह पर बँधी हुई मुँहपत्ती श्लेष्म एवं थूक से गीली होजाती है ; मैं देखता हूँ कि कभीकभी तो मुँह की लार सूत्र के पन्नों पर भी पड़ जाती है ; उस मुँह पत्ती के लगे हुये श्लेष्म में समुत्सम जीव तो उत्पन्न नहीं होते होंगे ? पज्यजी-इस बात के लिये मैं क्या कह सकता हूँ, यह तो केवल ज्ञानी ही जानते हैं। __गयवर०-क्या आपको इस में शंका है जो निश्चित नहीं कहते हो? पूज्यजी-हाँ, निश्चित नहीं कहा जा सकता है; पर थूक में जीवों की उत्पत्ति सूत्र में कहीं भी नहीं कही है। .. गयवर०-थूक के अलावा श्लेष्म भी तो लगता है । मुँहपत्ती को जब हम धोते हैं, तो उस में से चिकना २ श्लेष्म निकलता है और श्लेष्म में जीवों की उत्पत्ति होना आप ही फरमाते हो। पज्यजी-मुंह की गरम हवा से शायद् जीवों की उत्पत्ति नहीं होती हो ! गयवर०-आप यह भी तो फरमाते हो कि योनि तीन
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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