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________________ १४९ मुखवस्त्रिका की चर्चा कि पूज्य महाराज, यदि बत्तीस सूत्रों पर मेरी श्रद्धा नहीं होती, तो मैं घर ही क्यों छोड़ता, मैं विश्वास के साथ कहता हूँ कि बत्तीस सूत्रों पर मेरी दृढ़ श्रद्धा है और आपने जो उपालम्भ दिया है, उसके लिए मुझे कुछ भी दुःख नहीं है, क्योंकि आप मालिक हैं। यदि आप ही न कहोगे तो और कहेगा भी कौन । यदि मेरी तरफ से कोई त्रुटि हुई हो, तो आप उसे क्षमा करें। .. पूज्यजी-मोडीरामजी, जाओ पहिले गयवरचन्दजी को पारणा करवा दो। गयवर०-आप पधारो, मैं पारणा आपहीके हाथ से करूंगा। पूज्यजी स्वयं माडला पर पधारे और गयवरचन्दजी को पारणा करवाया, बाद सब साधुओं ने आहार पानी किया। पूज्यजी महाराज जान गये कि अब कनकमलजा को छेड़ना व्यर्थ है । बस, साधुओं को अलग २ बिहार करवा कर आपने जोधपुर की ओर विहार कर दिया। हमारे चरित्रनायकजी पज्यजी महाराज की सेवा में ही रहे। - पूज्यजी महाराज रोयट नामक ग्राम में पहुंचे ; रात्रि में हमारे चरित्र नायकजी पूज्यजी की पगचंपी कर रहे थे । पज्यजी ने कहा-"क्यों गयवर, मुँह पर मुँहपत्ती बांधने में तो तुम्हारी श्रद्धा दृढ़ है न ? गयवर०-पज्यजी महाराज, इस विषय में मैं कुछ भी कहना नहीं चाहता हूँ । कारण यहाँ ऐसा मामला है कि जो बोलता है, वही मारा जाता है। फिर वह सत्य हो या असत्य । पूज्यजी-नहीं, मैं तो तुमको स्नानगी पूछता हूँ। गयवर०-पूज्यजी महाराज, यदि आप मुझे वादी होकर
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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