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आदर्श-ज्ञान
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लिया और आत्मा की साक्षी से उसे पालता भी हूँ, पर ऐसा चोरों वाला काम न तो मैंने किया और न कर ही सकता हूँ। .
मोड़ी-अच्छा तो पूज्यजी महाराज से मैं क्या कहूँ।
गयवर०-ज्यजी महागज को मेरी ओर से आप अर्ज करदें कि आप पहिले शास्त्र लेकर देखें कि सूत्रों में क्या कहा है । फिर मुझसे हस्ताक्षर कावाइये ।
पूज्यजी समझ गये कि यहाँ बखेड़ा होने का ढंग मालूम होता है, अतः अब इस मामले को किसी प्रकार से निपटा लेना ही अच्छा है। उन्होंने मोडीरामजी से कहा कि जाओ, गयवरचंदजी को मेरे पास ले आओ।
मोड़ारामजी जाकर गयवरचंदजी को पूज्यजी के पास ले आये। ।
पज्यजी- गयवरचन्दजी, देखो तुम उच्च जाति व कुल के हो। ओसवालों में सबसे श्रेष्ठ वैद्य मेहता का खानदान है, उसी घराने में तुमने जन्म लिया है । तुमने बड़े त्याग और वैगग्य के साथ जवानी में ऋद्धि और स्त्री को त्याग कर दीक्षा ली है । भला, मैं तुमको नहीं कहूँ तो क्या जाट मैणा को कहूँगा; मैंने तो सुना है कि गयवरचन्दजी की श्रद्धा मूर्ति पूजा की हो गई, ऐसी हालत में मुझे गुस्सा आ गया और मैंने तुमको उपालम्भ दे दिया । यदि तुम्हारी बत्तीस सूत्र पर दृढ़ श्रद्धा है, तो तुम सब साधुओं के सामने कह दो, फिर कोई बात नहीं है। अभी तो चलो, पारणा करलो।
गयवरचंदजी ने पूज्यजी महाराज के अभिप्राय को जान लिया कि आप अपना मामला सलटाना चाहते हैं। अतः आपने कहा