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मूर्तिपूजा की चर्चा
पूज्यजी - यदि तुमको समुदाय में रहना है तो इस लेख के
हस्ताक्षर करदो |
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गयवर०
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- इस प्रकार हस्ताक्षर करना और करवाना मैं उचित नहीं समझता हूँ । कारण, आत्मा की साक्षी से चारित्र - पालन करना है फिर साधुओं में इस प्रकार हस्ताक्षर करदेने का क्या अर्थ है । हस्ताक्षर करने का काम तो चोरों का है, जिनका विश्वास न हो । पूज्यजी ने गुस्से में गर्म होकर कह दिया कि मेरे सामने से चले जाओ ।
गयवरचंदजी वहां से चल कर अन्यत्र जा बैठे । बाद में साधुओं में बड़ी खलबली मच गई । लाया हुआ आहार वैसे ही पड़ा रहा । पूज्यजी ने मोड़ीरामजी को बुलवा कर कहा कि जाओ गयवरचंदजी को समझाओ और कहदो कि पूज्यजी का हुक्म शिरोधार्य करना ही होगा । इत्यादि ।
मोड़ीरामजी ने गयवरचंदजी के पास आकर कहा कि पूज्यजी महाराज तुम्हारे पर सख्त नाराज हैं। शोभालालजी ने दस्तत कर दिए हैं तथा तुम भी करदो नहीं तो ठीक नहीं रहेगा ।
गयवर०—आपने लिखत को देखा है कि उसमें क्या लिखा है, जिस पर मेरा हस्ताक्षर करवाया जाता है ?
मोड़ी० - नहीं, मैं अभी उस लिखत को नहीं देखा पर सुना है कि शोभालालजी ने लिखत के नीचे दस्तखत कर दिये हैं। यदि ऐसा है, तो तुमको हस्ताक्षर करने में क्या हानि है ?
गयत्रर० – गुरू महाराज ! चाहे शोभालालजी महाराज ने हस्ताक्षर कर भी दिये हों, पर मैं आत्मा की साक्षी से चारित्र