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शोभालालजी और तीवरी
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श्रावक - क्या पत्थर की मूर्ति को जिन समझना मिथ्यात्क
नहीं है ?
शोभा० – कागज को आचाराङ्ग सूत्र समझने में मिध्यात्व लगता है ?
श्रावक — नहीं |
शोभा - तो फिर पत्थर की प्रतिमा, जो जिन - प्रतिमा कहलाती है, जैसे कि कागज आचारांग सूत्र कहलाता है, उसको नमस्कार करने में मिथ्वात्व कैसे लग सकेगा, कारण नमस्कार करने वाला का इरादा पत्थर को नहीं, पर जिनराज को है, अतएव जिनराज को नमस्कार कराना समकित निर्मल ही कहलाता है ।
इन प्रश्नोत्तरों से तीवरी के श्रावक समझ गये कि शोभालालजी की श्रद्धा मन्दिर मूर्ति के प्रति हो गई है, जैसे कि आत्मारामजी की हुई थी ।
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वे तीवरी के श्रावक पाली में पूज्यजी महाराज के दर्शनार्थं आये हुए थे । उन्होंने समय पाकर एकान्त में पूज्यजी से अर्ज की, कि आप तो गुजरात पधार गये, किन्तु यहां सब गड़बड़ घटाला हो गया है ।
पूज्यजी - क्यों, गड़बड़ कैसे हुई ?
श्रावक - आपके समुदाय के अच्छे लिखे पढ़े साधुओं की श्रद्धा मूर्ति-पूजा के प्रति हो गई है ।
पूज्यजी - किस-किस की १
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श्रावक – किसकी क्या, स्वामीकर्मचंदजी, कनकमलजी, शोभालालजी, तथा गयवरचंदजी, जिनको कि आप अपनी