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________________ भादर्श-ज्ञान १३२ समय हो जाने से आपने कहा-“ठीक है, सेठसाहब! इस विषय में आपके साथ और भी बातें करनी हैं। , सेठजी-ठीक, मैं भी समय मिलने पर उपस्थित होऊँगा। व्याख्यान समाप्त हुआ, सब लोग चले गये मुनि श्री के मनमें कई प्रकार की तरंगे उठने लगों, क्यों कि मेघराजजी वाला प्रश्न आपके दिल में बहुत दिनों से खटक रहा था, जिसका खुलासा आज सहज में ही हो गया। अब तो सेठजी के साथ बार्तालाप करने की मुनिजी की लम इतनी बढ़ गई, कि कभी सेठजी नहीं आते, तो समाचार भेज कर बुलवाये जाते । ___ सेठजी-पूज्यबनेचंदजी. चनणमलजी, पूज्यश्रीलालजी वगैरहा बड़े२साधुओं की सेवा किए हुए थे। जैसे श्राप ज्ञानी थे, वैसे ही गम्भीर भी थे। आपके साथ बातें करने में मुनिश्री को बड़ा ही आनन्द आता था और वे बातें केवल मन्दिरमूर्ति के विषय की ही नहीं थी, पर समय २ पर और २ विषय की चर्चा भी हुआ करती थी। एक समय सेठजी ने पूछा। सेठजी-केवली दिन-रात भर किसका ध्यान करते हैं। मुनिजी-ध्यान तो वे लोग करते हैं, जिनको आगे बढ़ने की अभिलाषा हो । केवली ने तो सब कुछ प्राप्त कर लिया है, स्नको अब ध्यान की जरूरत नहीं है। सेठजी-फिर वे करते क्या हैं। मुनिजी-करना तो उनके लिए कुछ रहा ही नहीं, वे तो जगत् के चराचर पदार्थ के द्रव्यगुण पर्याय के समय २ के भाव देख रहे हैं । उनके ध्यान को रूपातितस्थ ध्यान कहा है। सेठजी-आपने ठीक उत्तर दिया। इस प्रकार आपने थोड़े
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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