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अजमेर के व्याख्यान में चर्चा
.. मुनिजी-तो फिर फलचन्दजी जैसे उत्कृष्ट क्रियापात्र साधु ने इस प्रकार का मिथ्या भाषण क्यों किया ?
सेठजी-महाराज एक फलचन्दजी ही क्यों, पर ऐसे बहुत से साधु हैं कि केवल मत पक्ष के कारण इस प्रकार मथ्या अर्थ करते हैं । इतना ही क्यों, पर इस मत-पक्ष के कारण तो सब सूत्रों को छोड़ केवल ३२ सूत्र और वह भी टीका वगैरहः को छोड़ कर, केवल टब्बा को ही मानते हैं। इस विषय में मैं पूज्य बनैचन्दजी और चनणमलजी महाराज से अच्छी तरह से निर्णय कर चुका हूँ। हां, मन्दिर मार्गियों ने मन्दिरों में धूमधाम बहुत बढ़ा दी, इस कारण अपने वालों ने इसे बिल्कुल ही छोड़ दिया, किन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं होना चाहिए, कि मत-पक्ष के कारण उत्सूत्र बोल कर अर्थ का अनर्थ कर देना। - मुनिश्री-सेठ साहिब ! अपनी समुदाय में ३२ सूत्रों का टब्बा माना जाता है, और टीका क्यों नहीं मानी जाती हैजब कि कहा जाता है कि टीका से टब्बा बना है ।
सेठजी-महाराज साहिब मैं आपसे कह चुका हूँ कि एक मूर्ति नहीं मानने के कारण एक टीका ही क्यों, पर नियुक्ति भाष्य चूर्णी और कोई ग्रन्थादिका अनादर कर ज्ञान से वंचित रहना पड़ा है। अभी तो आप व्याख्यान वांचे, फिर कभी समय मिला वो आपसे अर्ज करूँगा, क्योंकि मैंने बहुत से विद्वान साधुओं की सेवा की है। ___ इस चर्चा से मुनिजी को यह भी ज्ञात हो गया कि मन्दिर मूर्ति के कारण ही टीका नहीं मानी जाती है, खैर व्याख्यान का