SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श-ज्ञान १२८ की ओर से तो इतनी उदारता थी कि पैसा सामायिक, चार आना दया और एक रुपया का पाठ प्रहर का पोषध, इस रेट से जैन जैनेत्तर कोई भी क्यों न हो, सब से धर्म करवाया करते थे। दुनिया कुछ भी कहे, पर सेठजी तो अपने दिल में यही समझते थे कि लक्ष्मी चंचल है, अतः संसारिक कार्यों में इसका दुरुपयोग किया जाने के बजाय तो किसी को द्रव्य की सहायता देकर उसको इतने समय के लिये पापाचार से बचाना अच्छा ही है ! सेठ साहब की उदारता केवल इस चतुर्मास के लिए ही नहीं थी,किन्तु जोधपुर वगैरहः में निराधार जैन लोगों को रामनाथजी साहिब मुणोत की मारफत इसी प्रकार सामायिकादि धार्मिक कृत्य करवा कर उनको द्रव्य सहायता पहुँचाया करते थे। इतना ही क्यों, पर जब कभी अजमेर में मकोड़े ज्यादा हो जाते थे, और वे सड़कों पर गाड़ी इक्कों और मनुष्यों के पैरों के नीचे बुरी तरह मरते थे, तब आप मजदूर कर उन कीड़ों के डब्बे भरा २ कर बाहर जंगल में छुड़वा देते थे। अतएव यह कहना पड़ता है पंचरंगी का मतलब है किपांच भादमी पांच-पांच पांच आदमी चारचार, पांच आदमी तीन-तीन, पांच आदमी दो-दो और पांच आदमी एक. एक सामायिक करें, इस प्रकार कुल ७५ सामायिकों को पंचरंगी कहते हैं। इसी प्रकार सतरंगी, नौरंगी, ग्यारहरंगी और पन्द्रहरंगी हैं। पन्द्रहरंगी में २२५ भादमी चाहिये, पन्द्रह आदमी पन्द्रह-पन्द्रह, प द्रह ही चौदह-चौदह, पन्द्रह ही तेरह २ इस तरह क्रमशः पन्द्रह हो एक-एक सामायिक करते हैं। कोई भादमी ५ सामायिक करे और पहिले ५ पाँच वालों की भर्ती हो गई है, तो उन ५ सानायिक करने वालों को ३ और २ में अलग २ भी गिनती हो सकती है। यह वाद-विवाद धर्म के लिये नहीं किंतु मान बड़ाई और अपनी बात रखने के लिये ही था।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy