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वि० संवत् १९६९ का चतुर्मास अजमेर में
कथा- हनियां तथा और भी बहुत से दृष्टान्त याद थे, जिस पर श्रोतागण मुग्ध होजाते थे । इस पर स्थानकवासी साधुओं के दिल में थोड़ा-बहुत इर्षा भाव भी पैदा हुआ, किन्तु लोढ़ा, ढढ्ढा, संघी और सेठजी चांदमलजी साहिब इत्यादि सब हमारे मुनिश्री के सेवा में अग्रसर थे। साथ ही वे पूज्यजी महाराज के पूर्ण भक्त थे। वे सब तीनों समय मुनिश्री की सेवा में आया करते थे। __ स्थानक वासी साधुओं ने इर्षा के मारे दया और सामायिकों की पंचरंगी करवानी शुरू की, तो इधर भी वहाँ से दुगुणा धर्म होने लगा; क्योंकि यहां द्रव्य व्यय करने वाले भी विशेष थे और सेठजी चांदमलजी को इस बात का पूरा प्रेम भी था। आखिर में वादविबद होने से इस विषय पर जोर दिया गया कि देशियों की
ओर से सामायिकों की पंचरंगी, सातरंगी, नवरंगी, तक हुई तो यहाँ ग्यारहरंगी, पन्द्रहरंगी तक पहुँच गये । श्रावक इतनी सामायिकें करने वाले नहीं थे, किन्तु जैनेतर लोगों को पैसा सामायिक के हिसाब से सामायिकें करवानी शुरू कर दी । वे विशेष रात्रि में ही कोई पांच, कोई दस और कोई पन्द्रह सामायिकें कर लेते
और जितनी सामायिक करते उतने ही पैसे ले जाते । हाँ सामायिक के स्वरूप को नहीं समझने के कारण जब उनको बीड़ी पीने की दिल में आती, तो पेशाब का बहाना कर बाहर जाकर सामायिक में बीड़िये भी पी आते थे। __इतनी अधिक सामायिकें करने का विशेष कारण हमारे चरित्रनायकजी ही थे। वे रात्रि में बड़ी-बड़ी कथा कहा करते थे, जिसमें हास्य, शृंगार, वीर और वैराग्य रस होने से, उसको सुनने में लोगों का समय सहज ही में निकल जाता था। सेठजी