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আহা-মান
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आप जिस समय ब्यावर आये, उस समय मेघराजजी बाहर चले गये थे। आपके विहार के समय में जितने साधु मिले, उनसे पूछा गया परन्तु इसका योग्य तथा वाजिब जबाब नहीं मिला फिर भी इसका निर्णय करने को आपको पक्की लग्न थी।
आपका चतुर्मास अजमेर में होना निश्चित हुआ; स्वामी लालचंदजी, चाँदमलजी, सिरदारमलजी, फोजमनजी तथा हमारे चरित्र नायकजी अजमेर पहुँच गये । लाखन कोटड़ी में संघीजी की हवेली नामक एक विशाल मकान था, वहाँ आपने चतुर्मास कर दिया । व्याख्यान में सुबह श्री ज्ञानसूत्रजी सूत्र तथा दोपहर को हमारे चरित्र नायकजी साधुओं को श्री भगवतीजी सूत्र की वाचना देते थे; जिसमें श्रावक, श्राविकाएं तथा साध्वियाँ भी आती थीं । सेठजी चांदमलजो उम्मेदमलजी वगैरहः श्री भगवती जी सूत्र बड़े ही उत्साह से सुनते थे तथा भगवतीजी जैसा एक गहन सूत्र, इस प्रकार अचिर काल के दीक्षित मुनि खूब सममा करके बांचें, यह एक आश्चर्य की बात थी। आप श्री भगवतीजी सत्र को इस प्रकार स्पष्ट क्यों बांचते थे, इसका कारण यह था कि आपने श्री भगवतीजी सूत्र के थोकड़े कण्ठस्थ कर रखे थे, जिसमें करीब वारहआने भर श्री भगवतीजी आजाती हैं। वह भी सब द्रव्यानुयोग का विषय था जो साधारण साधुओं के लिए कठिन से कठिन कहलाता है, लेकिन आपने उसको साधारण कर लिया था।
आपके व्याख्यान देने की शैली ही इस प्रकार की थी, कि व्याख्यान-भवन खचाखच भर जाने लगा; कारण आपको जिस प्रकार सूत्रों के पाठ कण्ठस्थ थे, वैसे ही छन्द, कवित्त, श्लोक,