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________________ १२९ अजमेर के व्याख्यान में चर्चा कि धार्मिक कार्यों और दया पर जैसी सेठ साहब की रुचि थी, वैसी थोड़े मनुष्यों में देखने में आतो है। सेठसाहब स्थानकवासी श्रावक थे, पर आपको मन्दिर का भी पूरा इष्ट था, बिना मन्दिरजी के दर्शन किए, आप प्रायः अन्नजल भी नहीं लेते थे। ___एक समय व्याख्यान में द्रौपती के अधिकार में जहाँ जिन मन्दिर और जिनप्रतिमा, का पाठ आया, तथा द्रौपदी जिन प्रतिमा की पूजा करने का अधिकार प्राया, तो हमारे चरित्रनायक जी ने अपने संस्कारों से प्रेरित होकर कह दिया कि यह प्रतिमा कामदेव की थी और द्रौपदी ने विवाह के समय कामभोग के लिए ही पूजा की थी । सेठजी यह सुन कर व्याख्यान में बोल उठे। सेठजी क्यों महाराज ! आप फरमाते हैं ऐसा ही शब्द सूत्र में लिखा है ? ' मुनिजी-सुत्र में तो द्रौपदी ने जिनप्रतिमा की पूजा करना ही लिखा है। सेठजी-तो फिर आप किस आधार से कहते हो कि प्रतिमा कामदेव की थी ? मुनिजी हमने ज्ञातसूत्र की वाचना ली थी, तब हमको यह बात समझाई-कही गई थी। सेठजी-आपने ज्ञातसूत्र किस के पास पढ़ा था ? मुनिजी-फूलचन्दजी महाराज के पास । सेठजी-तो क्या फूलचन्दजी ने आपको यह कहा था कि द्रौपदी ने पूजा की वह प्रतिमा कामदेव की थी। मुनिजी- हाँ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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