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आदर्श-5
-ज्ञान
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गयवर० - भाई हम दुनिया को तारने की कोशिश करते हैं;
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यदि आपको हमें कपड़ा देने में पाप लगता हो, तो हम कपड़ा लेकर आपको डुबोना नहीं चाहते ।
तेरहपन्थी - हम तेरहपन्थी साधु के अतिरिक्त किसी को भी दान देने में पुण्य नहीं समझते । गयवर०- - तब तो लगना ही समझते हो न ?
हमको कगड़ा देने में आपको पाप
तेरहपन्थी - पुण्य होना तो मैं हर्गिज भी नहीं समझता हूँ गयवर० - हमको कपड़ा देने में पाप किस प्रकार होता है ? तेरहपन्थी - इतना तो में जानकार नहीं हूँ ।
गयवर० - तो फिर आप पाप किस प्रकार बतला सकते हो ? तेरहपन्थी - हमारे साधु कहते हैं।
गयवर०- - बस आपके साधुओं के कहने पर ही यह मिथ्या हठ पकड़ रखा है। अच्छा हमको कपड़ा देने में पाप समझते हो तो अन्नल देने में भी पाप समझते होंगे ?
तेरहपन्थी - हाँ ।
गयवर : --
- आप तेरह पन्थी साधु को अन्न, जल, वस्त्र देने में पुण्य मानते हो और हमको देने में पाप समझते हो, इसका क्या कारण है ।
तेरहपन्थी—हमारे साधु भगवान की श्राज्ञानुसार चलते हैं । - इसका क्या प्रमाण है ? भगवान ने तो दीक्षा
गयवर०
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लेने के पूर्व स्वयं वर्षो दान दिया है, और आप एक पंच - महाव्रतधारी को भी अन्न, जल, वस्त्र देने में पाप समझते हो ?
जो लोग उस समय वहाँ उपस्थित थे, वे लोग समझ गये