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________________ ११५ सं० १९६७ का चातुर्मास कालु आनंदपुर उन्होंने यों ही गाली गलोज करके जनता को अपनी योग्यता का परिचय दिया । इधर मुनिश्री ने श्वेताम्बरियों की प्राचीनता के लिये अनेक अकाट्य प्रमाण दिये और विजय प्राप्त कर अपने मकान पर लौट आये । इसी प्रकार कालु के तेरह पन्थियों से भी एक बार चर्चा हुई और उस में भी मुनिश्री की विजय का ही डंका बजा । चर्तुमास समाप्त होते ही ब्यावर से ७-८ श्रावक आये । वे कहने लगे कि आपको पूज्यजी महाराज ने याद किया है और कहा है कि गयवरचन्दजी इस तरह अकेले विहार करें यह ठीक नहीं है, हमारे पास आ जावें तो हम रखने को तैयार हैं। ऐसी हालत में आपको यहां से विहार कर सीधे हो अजमेर पधारना चाहिए । पूज्यजी महाराज अभी अजमेर पधार कर वहीं ठहरेंगे । कुछ समय हमारे चरित्रनायकजी तो इस बात को चाहते ही थे । आप विहार कर अजमेर चले गये । पूज्यजी महाराज को जो कुछ कहना था कह कर आपको अपने पास. प्रेम के साथ रख लिया । पूज्यजी महाराज ने कहा कि मेरा बिचार तो गुजरात की ओर जाने का है, तुम शोभालालजी के पास रह जाओ, तुम्हारे अच्छा ज्ञानाभ्यास हो जायगा । अस्तु पूज्यजी महाराज की आज्ञा शिरोधार्य कर श्राप शोभालालजी महाराज के पास रह गये, और आपकी विनय भक्ति कर ज्ञान प्राप्त करने लग्न हो गये ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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