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________________ आदर्श-ज्ञान १०८ में एकमास खामण तप है; किन्तु जब १५ दिन हुए तो उनकी इच्छा धारणा करने की होगई । बहुत कुछ कहने पर भी उनका दिल पारणा से नहीं रुका। ऐसी अवस्था में फूलचन्दजी महाराज बड़ा ही अफसोस करने लगे कि लोगों में अफवाह तो फैल गई, अब ठीक मालूम नहीं होगा । इस पर हमारे चरित्रनायकजी ने कहा कि आप फिक्र क्यो करते है, मैं मास खामन की तपस्या करने को तैयार हूँ, प्रदेशी साधुओं की बात कभी नहीं जाने दूँगा । बस पहिले दिन उचित धारणा कर एक ही साथ में मास उपवास की तपस्या का पच्चखान कर लिया। हमारे चरित्रनायकजी वास्तव में मारवाड़ के धोरी-वीरथे, अपनी बात का आपको कितना गौरव था? आपने पहिले, ८ उपवास से ज्यादा का तप कभी नहीं किया था, तथापि हिम्मत कर मास उपवास कर लिया । उस तपस्या में भी आर अन्त तक धोरण पानी अपने आप जाकर लाया करते तथा २७ दिन तक व्याख्यान भी देते रहे थे । अन्त में तपस्या का पाराण बहुत आनन्द के साथ होगया; इस तपस्या के पारणों पर श्रावक श्राविकाओं में भी बहुत तपस्या हुई । बीसलपुर सालावास से आपके संसार पक्ष के बहुत से कुटुम्बी दर्शनार्थ आये थे । आप का तप संयम और व्याख्यान की छटा देखकर वे प्रसन्न होये । बीसलपुर के प्रतापमलजी मूथा, जिन्होंने आपके वैराग्य के प्रारम्भ में कारण रूप होकर अनाथी मुनि की स्वाध्याय सुनाई थी, और आपसे यह वचन भी ले लिया था कि आप दिक्षा ले और कभी मेरी भावना होगई तो आप को मुझे भी दीक्षा देनी पड़ेगी ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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