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________________ आदर्श-ज्ञान १०६ पूज्यजी-गयवरचंद! इन बातों को तो केवली ही जानते हैं मैं तो अपनी परम्पराके अनुसार ही करता हूँ । जाओ प्रतिलेखन का समय होगया है, प्रतिलेखन करो। २२–संवत् १६६६ का चतुर्मास जोधपुर में __जोधपुर में फूलचादजी महाराज बिराजते थे। आपके शरीर में कुछ तकलीफ होने से , आपने कुचेग पूज्यजी महाराज को कहलाया कि यहाँ दो साधुओं को आवश्यकता है, पज्यजी महाराज ने एक तो धनराजजी तपस्वी को तथा दूसरे हमारे चरित्र नायकजी को कहा कि तुमको जोधपुर जाना पड़ेगा। आपने उत्तर दिया कि मेरे नेत्रों में अभी तक थोड़ी बहुत वेदना है, तथा मैं ज्ञानाभ्यास के लिए आपकी सेवा में रहना चाहता हूँ। तब पूज्यजी महाराज ने जोर देकर कहा कि बीमार साधुओं की सुश्रुषा करना महाकल्याण कारक है, और वहाँ भी तुम्हाग ज्ञानाभ्यास होता रहेगा। मेरी आज्ञा है कि तुम धनराजजी के साथ जोधपुर चले जाओ। इस प्रकार आपके नेत्रों की तकलीफ होने पर भी पूज्यजी के हुक्म को स्वीकार करना पड़ा । जब कुचेरा से बिहार किया तो उस दिन आपके एकान्तर का उपवास था । धनराजजी एक ऐसे मन चले साधु थे कि कुचेरा से खजवाने गये । वहाँ पहुँचने पर थोड़ा-सा दिन शेष रहा तो, वहाँ के श्रावकों ने बहुत विनती की, पर नहीं ठहरे। फल यह हुआ कि एक घंटा रात्रि चली
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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