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कुचेरा की चर्चा
किया कि यह कैसी संकीर्णता है ? क्या श्री समन्धर स्वामी से यह प्रदेशी साधु ही साधुत्व का पट्टा करवा लाये हैं जो आप कई प्रकार की माया व छल कपट करते हुए भी, दूसरों को "पधारो" मात्रा कहने में ही महा पाप समझते हैं। ___ गयवर०-पूज्यजी महाराज! श्राप छोटी-छोटी बातो में बिना कसूर ही दंड दे देते हो और कोई भी साधु उस दंड को नहीं करते, फिर इसका क्या अर्थ हुआ? आपने दंड उतारने का तरीका भी खूब बतलाया है कि पांच उपवास करने से ६२५ उपवास और उसपर एक पौरसी करने से १२५० उपवास उतर जाते हैं। क्या ऐसे बिना कुसूर दंड देना और पांच उपवास एवं पौरसी करने से १२५० उपवास उतर जाना किसी सूत्र में लिखा है ? मुझे तो यह कल्पना के सिवाय और कुछ भी मालूम नहीं होता है । _पूज्यजी-क्या मैं बिना कसूर प्रायश्चित देता हूँ ?
गयवर०-स्वामी जोरावरमलजी एक अच्छे साधु हैं । वे अपने यहाँ चला कर आये, और उनको 'पधारो' कहदिया तो यह भी कसूर समझा गया । क्या यह कल्पना नहीं है ? ___ पूज्यजी-गयवरचंद, साधुत्व देशी साधु त्रों में है या प्रदेशियों में, इस बात को तो केवली ही जानते हैं , पर अपने को तो व्यवहार ही देखना चाहिये ।
गयवर०-क्या स्वामी जोरावरमलजी का व्यवहार खराब है पूज्यजी-हाँ, यह शिथलाचारी है ?
गयवर०-इसको मानने वाले अपने को मायाचारी बतलाते हैं। जब अपने को कभी वे ' पधारो' कहदें , तो वहभी दंड के पात्र होते होंगे ?