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________________ भादर्श-ज्ञान १०२ निक्षेप पूजनीय नहीं माना जाय तो अन्य तीर्थियों का भाव निक्षेप अपूजनीय है । उनका स्थापना निक्षेप वन्दनीय एवं पूजनीय ठहरेंगे यह सूत्र का रहस्य है इसको समझ कर ही बोलना चाहिए फिर आप पूज्यजी महाराज से पूछलें । पूज्यजी०- हाँ सेठजो का कहना ठीक है। अमर०-केवल स्थापना निक्षेप ही नहीं किन्तु तीर्थङ्करों का द्रव्य निक्षेप भी वन्दनीय है, जो अपने हमेशा लोगास्स का पाठ कहते हैं । वही लोगस्स भगवान् ऋषभदेव के साधु कहा करते थे, और उस समय २३ द्रव्य तीर्थंकरों को वे वन्दन करते थे, इनके अलावा सिद्ध भगवान को नमुत्थुणं देते हैं, वह भी द्रव्य निक्षेप को ही देते हैं, क्योंकि द्रव्य निक्षेप का मतलब यही है कि भाव निक्षेप का भूत और अनागतकाल, जैसे-ऋषभदेव के समय में २३ तीर्थंकर अनागत काल में होने वालों को वे साधु नमस्कार करते थे, वैसे ही सिद्ध भगवान गत् काल में तीर्थकर हुए थे, उनको नमस्कार किया जाता है। साघु०-क्यों, सिद्ध भगवान् को भाव निक्षेप नहीं कहा जा सकता है ? __ अमर०-सिद्धों को नमुत्थुणं अरिहन्ताआदि का पाठ ही कहा जाता है । वह भाव निक्षेप का नहीं, पर द्रव्य निक्षेप का ही है, क्योंकि सिद्धों में नमुत्थुणं के सब गुण वर्तमान में नहीं है पर भूतकाल में थे। ___पूज्यजी-मांगीलाल तुमको अभी नयनिक्षेप का ज्ञान नहीं है । सेठजी का कहना ठीक है, क्योंकि सिद्धों को नमुत्थुणं दिया जाता है, वह नैगमनय का आरोप नाम का विकल्प है, अर्थात्
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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