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नागोर के प्रश्नोत्तर
भाव निक्षेप का भूत, भविष्य, काल को वर्तमान में आरोप कर वन्दन नमस्कार किया जाता है, उसको नैगमनय कहा जाता है, और नैगमनय चारों निक्षेपों को मानता है ।
इस तकसे साधु मांगीलालजी को नयनिक्षेप का थोड़ा बहुत ज्ञान हुआ और जो मूर्ति का खन्डन करते थे उसका पश्चाताप करने लगे।
बाद में अमरचन्दजी साहब ने साधुओं से एक प्रश्न पूछा कि कहो वीतराग का धर्म किस में है ?
उत्तर में, एक ने कहा वीतराग का धर्म दया में, दूसरे ने कहा भगवान का धर्म विनय में, और तीसरे ने कहा वीतराग का धर्म तपस्या में इत्यादि, जो जिस के दिल में आया वही कह दिया । इस पर अमरचन्दजी ने कहा कि वीतराग का धर्म वीतराग की आज्ञा में है, आज्ञा के बिना दया, विनय, दान, शोल, तप वगैरहः सब कर्मबन्धन के हेतु कहें हैं, ऐसा मैंने सूयधड़ायांगजी सूत्र में सुना है । क्यों, पज्यजी महाराज मेरा कहना ठीक है न ?
पूज्यजी-हां, सेठ साहब ! सूत्र में इस बात का उल्लेख है।
जिस समय उपरोक्त वार्तालाप हुआ, उस समय हमारे चरित्रनायकजी भी मौजूद थे। ___ पूज्यजी महाराज कई दिन नागौर ठहरे और बाद में मोडीगमजी वगैरहः को तो कुचेरा की ओर भेज दिया और आप बिहार कर डेह गाम पधारे। वहां हँसरोजजी नामक एक अच्छे श्रावक थे। वे पूज्यजी महाराज के पूर्ण भक्त और श्रद्धा सम्पन्न थे। उनके आग्रह से पाँच दिन वहां ठहर कर विहार किया।