________________
'आदर्श-ज्ञान
सामने बैठे थे, वे अपनी एक गाथा पर ही दृष्टि लगाये रहे, उनको यह इधर-उधर का व्याख्यान अरुचिकर हुआ, क्योंकि पूज्यजी महाराज तो अपनी चातुर्यता से व्याख्यान में उन श्रावकों को एक दो बार बतलाते थे, परन्तु हमारे चरित्र-नायकजी अपनी धुन में २ घंटे तक पंजाब मेल की चाल के भांति व्याख्यान देते ही रहे । ताराचन्दजी वगैरहः ५.६ श्रावकों ने पज्यजी महाराज के पास जाकर कहा कि आप ने ऐसे साधु को व्याख्यान क्यों सौंप दिया, कि जिस गाथा को कहा उसके अतिरिक्त इधर-उधर की बातों से ही व्याख्यान पूरा कर दिया। पूज्यजी ने कहा कि यह तो वक्ता की इच्छा पर है, यदि जिनवचनों से कोई बात विरुद्ध कही हो तो हम उपालम्भ दे सकते हैं, यदि आपको पसंद न हो, तो आप व्याख्यान के समय मेरे पास आया करें, मैं आपको अनुयोग द्वारा सूत्र सुना दूंगा। यह कहकर पूज्यजी महाराज ने हमेशा का झगड़ा मिटाकर व्याख्यान का मार्ग निष्कण्टक बना दिया। ___ हमारे चरित्रनायकजी ने करीब १५ दिन व्याख्यान बांचा, जिसका जनता पर इतना प्रभाव पड़ा कि परिषद् में काफी उन्नति हुई और अच्छे-अच्छे लोगों के मुँह से यही शब्द निकल पड़े कि पूज्यजी महाराज की पदवी के लिए आपके साधुओं में यही गयवरचन्दजी महाराज योग्य हैं।
एक दिन का जिक्र है कि हमारे चरित्रनायकजी, अनोपयोग से पहिले दिन कोई साधु धोवण लाये थे, उसी घर से दूसरे दिन भी धोवण ले आये। साधुओं ने पूज्यजी से कहा और पज्यजी ने एक उपवास का दण्ड दिया। कुछ दिन के बाद ऐसा मौका पड़ा कि खुद पूज्यजी महाराज गौचरी के लिए गये, बहुत