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________________ सं० १९६५ का चातुर्मास बीकानेर में से साधु साथ में थे, एक पहिले दिन आहार लाये हुए घर में पूज्यजी महाराज गौचरी जाने लगे, तो एक साधु ने कहा कि इस घर से कल आहार ले आये थे। पूज्यजी ने उस पर लक्ष न दे कर उस घर वाला श्रावक के आग्रह से गोचरी वेहरली। साधु धोवण लेकर मकान पर आया और उसने सब हाल गयवरचन्दजी को कह दिया, बाद में पूज्यजी महाराज मकान पर आये तो गयवरचन्दजी ने विनय की कि नित्य पिन्ड लेने वाले तथा भोगने वाले के लिये क्या प्रायश्चित होता है । पूज्यजी महाराज समझ गये कि यह हमला मेरे पर हो है, पूज्यजी ने गुस्से में आकर कहा कि तुम्हें कहने का क्या अधिकार है। जाओ, तुमको मैं चतुर्मासिक प्रायश्चित देता हूँ। ठीक है, सत्य कहने पर माँ भी मारती है। गयवर०-चतुर्मासिक प्रायश्चित किस बात का है ? । पूज्यजी०-प्रायश्चित मंजूर करलो, वरना तुम्हाग आहार पानी अलग कर दिया जावेगा। गयवर०-पूज्यजी महाराज आप ही ने तो एक दिन कहा था कि अन्याय का दण्ड स्वीकार नहीं किया जाता है । पूज्यजी०-क्या मैं अन्याय का दण्ड देता हूँ ? गयवर०-यदि न्याय है तो कहिए, मैंने क्या कसूर किया है, यदि सत्य कहना भी कसूर समझा जाता हो तो ऐसे न्याय को हजार नमस्कार है । पूज्य महाराज, क्या करूं, मैं मेरी आदत से लाचार हूँ कि सत्य बात कहे बिना मेरे से रहा नहीं जाता है। इतने में मोड़ीरामजी महाराज आये और गयवरचन्दजी को अलग ले गये। ज्यजी ने कह दिया कि गयवरचन्दजी का आहार
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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