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________________ आदर्श-ज्ञान साधु बाचता था, उसी सूत्र के पन्ने हाथ में लेकर बैठते थे । श्रावण का मास था, बीकानेर की विशाल परिषद् थी । व्याख्यान बांचना भी जरूरी था जब चिरकाल की दीक्षा वाले ने ही बीकानेर की परिषद् में व्याख्यान देने से इन्कार कर दिया तब नवदीक्षितों का तो कहना ही क्या था । पूज्यजी महाराज की एक यह भी प्रकृति थी कि आप अपने पास किसी विद्वान लिखे पढ़े साधु को नहीं रखते थे। जो रहते थे वे जी-हुसूर के अति. रिक्त कुछ भी नहीं जानते थे। दूसरे पूज्यजी महाराज की अन्दर की रुचि किसी साधु को पढ़ाकर विद्वान बनाने की भी नहीं थी, और न आपने अपनी जिन्दगी में सिवाय हमारे चरित्र नायकजी के किसी साधु को विद्वान बनाया था। यही कारण था कि आप के इतने साधु होने पर भी पूज्य पदवी जवाहिरलालजी को देनी पड़ी जो दूसरी फली के अनाधिकारी थे । - पूज्यजी महाराज ने गयवरचन्दजी को बुला कर कहा कि जाओ तुम व्याख्यान बांचो । गयवर०-पूज्यजी महाराज, मैं तो अभी नवदीक्षित हूँ, बीकानेर की परिषद् में मैं कैसे व्याख्यान बांच सकता हूँ, आप. किसी दूसरे साधु को भेजदें । पूज्यजी-दूसरा कोई ऐसा साधु नहीं है कि जो बीकानेर की परिषद् में जाकर व्याख्यान बांच सके, अतएव तुम ही जाओ। गयवर०-मैं वहाँ जाकर क्या व्याख्यान बाचूंगा ? पूज्यजी०-तुमने केसरीमलजी से दशवैकालिक सूत्र का शब्दार्थ सीखा है, जाओ व्याख्यान में वही बांच देना । गयवर०-तथास्तु ! तब आप दशवैकालिक सूत्र के पन्ने
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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