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________________ सं० १९६५ का चातुर्मास बीकानेर में मान हो अतएव तुम सब काम छोड़कर बिना चूके हमारे व्याख्यान में बैठकर व्याख्यान की तर्ज सीखा करो। तथास्तु । बस उसी दिन से आप पूज्यजी के व्याख्यान में बैठकर सब तरह की चातुर्यता धारण करने लगे। पूज्यजी महाराज व्याख्यान बड़े ही जोर से देते थे यहाँ तक कि आपकी मुँहपत्ती थक और श्लेष्म से इतनी गीली होती थी कि उस के लिए हमारे चरित्रनायकजी दो तीन मुँहपत्तियां डोरे सहित तैयार रखते थे कि एक मुँहपत्ती गीली होती कि उसी समय दूसरी मुँहपत्ती दे दी जाती थी। ___ व्याख्यान में कई ऐसी भी बातें आती थी कि जिनको नोट करने की आवश्यकता रहती थी इसलिए आपने पेन्सिल रखनेकी पूज्यजी से आज्ञा मांगी, किन्तु बड़े पूज्यजी ने पेन्सिल रखने की मनाई की थी अतः आप आज्ञा नहीं दे सके । इस हालत में आप काराज और कोलसे का टुकड़ा पास में रख कर जरूरी बातें नोट कर लिया करते थे । ज्ञान की पिपासा इसे ही कहते हैं। पूज्यजी ने शोभागमलजी तातेड़ को साधुओं पर कोतवाल मुकर्रर कर रखा था और इस बात की जिमेवारी दे रखी थी कि सब साधु तीन बजे उठकर ज्ञान ध्यान किया करें। अशुभ कर्मोदय से श्रावण शुक्ल पक्ष में पूज्यजी महाराज के पैरों में ऐसा दर्द हुआ कि जिससे व्याख्यान वाचना भी बंद हो गया, पूज्यजी के पास ११ साधु थे, किन्तु बीकानेर की सभा में व्याख्यान वाचने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई। इसका कारण यह था कि वहाँ कितने ही श्रावक लिखे पढ़े थे तथा व्याख्यान में प्रश्न तथा तर्क वितर्क किया करते थे। एक हनुमानगढ़ के ताराचन्दजी नामक श्रावक थे जो व्याख्यान में जो सूत्र
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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