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________________ भादर्श-ज्ञान कर पूज्यजी ने कह दिया कि ये गयवरचदजी तुम्हारे शिष्य हैं; इनको ज्ञानाभ्यास में खूब सहायता करना, इत्यादि । । __मोड़ीरामजी ने-पूज्यजी महाराज की आज्ञा को शिरोधार्य करली और गयवरचंदजी की ओर अपना धर्म स्नेह व प्रेम बढ़ाया, आपको अलग ले जाकर धोवन पिलाया और तपश्चर्य की सुखसाता पूछी। और मुनि श्री ने गुरु महाराज को वन्दन किया । २१-सं०१६६५ का चातुर्मास बीकानेर में पूज्यजी-अपने ११ साधुओं के साथ आसाढ़ शुक्ल तृतीया को बीकानेर पधारे और श्रीमान् अगरचंदजी भैरुदानजी सेठी की कोठरी में आपका चतुर्मास हुआ । हमारे चरित्रनायकजी पर पूज्य महाराज को बड़ी कृपा थो सव साधुओं से अधिक आपका मान सम्मान था। गयवरचंदजी की भक्ति विनय और व्यावञ्च पर पूज्य महाराज बड़े ही प्रसन्न थे एक दिन रात्रि में हमारे चरित्र नायकजी पूज्यजी की पगचम्पी कर रहे थे पूज्यजी ने प्रसन्नचित होकर कहा गयवरचंदजी तुमको कण्ठस्थ ज्ञान करना है या वक्ता ( ब्यारख्याता) बनना है ? गयवरचंदजी ने कहा कि मुझे तो आपका दास बनना है । जो आप हुक्म फरमावे मैं शिरोधार्य करने को तैयार हूँ। पूज्यजी ने कहा-ज्ञानाभ्यास करने का मौका तो और भी मिल जायगा किन्तु व्याख्याता बनने का समय तो यही है क्योंकि तुम बुद्धि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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