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________________ १६-जावद में गेनमलजी चौधरीकी नेक सलाह। हमारे चरित्रनायकजी विहार करते हुए भानपुर आये, वहां चौथमलजी वगैरहः कई साधु थे। आप उनके शामिल न ठहर कर अलग हो ठहरे । बाद में चौथमलजी के साधु आपके पास में श्राये, और पूज्यजी की निन्दा कर आपको अपने पास रखने की बहुत कोशिश की, किन्तु श्राप इन जावरा वाले साधुओं ( चौथमलजी के गुरु हीरालालजी और इनके गुरु जवाहिरलालजी वगैरहः ) के आचार विचार से पूर्ण परिचित थे, श्रतएव आपने स्पष्ट कह दिया कि न तो मैं पूज्यजी महाराज की निन्दा सुन सकता हूँ, और न मैं आपके पास रहना ही चाहता हूँ, आप अपने मकान पर पधारिए । यह सुन कर आये हुए साधु निराश होकर चले गये और आप विहार कर रामपुरे पधारे । रामपुरा में केसरीमलजी सुराणा नामक एक प्रख्यात श्रावक थे । वे कई वर्षों से एकान्तर तप करते थे। उनकी ईर्षा समिती देख कर तो श्राप विस्मय युक्त हो गये, कारण ऐसी ईर्षा समिती किसी साधु के भी नहीं देखी थी। साथ ही आप स्थानकवासियों के माने हुए टया के ३२ सूत्रों के भी पूर्ण ज्ञाता थे, कई साधु तो आपके पास आकर सूत्रों की वाचना लिया करते थे। आपने भी वहां कई दिन ठहर कर दशवकालिक सूत्र सम्पूर्ण और कई अध्ययन उत्तराध्यनजी सूत्र के शब्दार्थ का अभ्यास किया । श्रावकजो ने संयम के लिए भी आप को बहुत कुछ कहा, जिस
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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