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आज्ञा के लिये बीसलपुर जाना .. पूज्यनी महाराज अजमेर बिराजते थे वहां से आप के लिये समाचार आया कि गयवरचन्दजी की मर्जी हो, तो वे मेरे पास श्रा जावें, या सोजत में फूलचन्दजी के पास जाकर चतुर्मास कर लें, किन्तु ब्यावर में ठहरने की मेरी आज्ञा नहीं है । इसका कारण शायद् यह हो कि गयवरचन्द को मन्नालालजी भ्रम में डाल कर अपना शिष्य बनालें । अहा-हा-गृहस्थ लोगों में जैसे धन की तृष्णा है और वह धन के लिये अनेक प्रकार के प्रपंच, जाल, माया, मूंठ आदि रचते हैं इसी तरह साधु लोग चेला चेली के लिए किया करते हैं, विशेषता इतनी हो है कि गृहस्थों के इन बातों का सर्वथा पच्चक्खान याने त्याग न होने से पाप तो लगता है, पर व्रत-भंग का दोष नहीं लगता है, परन्तु साधुओं को पाप भी लगता है और वे सर्वथा त्यागी होने से उन्हें व्रत-भंग का दोष भी लगता है। कलिकाल में शायद वह दोष कलियुगी साधुओं से डरता हो तो बात दूसरी है। हाय ! खेद और महा खेद है कि साधु जीवन भी इतना कलुषित है तो गृहस्थ जीवन का तो कहना ही क्या है।