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________________ १७–सोजत-चतुर्मास और आज्ञा-पत्र की प्राप्ति हमारे चरित्र नायकजी ने सोचा कि जब पूज्यजी महाराज की इस समय शुभ दृष्टि ही नहीं है और आज्ञापात्र भी नहीं मिला है, फिर अजमेर जाकर पूज्यजी के साथ चतुर्मास करने में लाभ ही क्या है । इससे तो अच्छा यही है कि सोजत जाकर चतुर्मास करदिया जावे जिससे पूज्यजी की श्राज्ञा का भी पालन हो जायगा और अपने भी शान्ति के साथ ज्ञानाभ्यास होता रहेगा। अतएव आपने ब्यावर से विहार कर सोजत जाकर फूलचन्दजी महाराज के पास चतुर्मास कर दिया । सोजत में बख्तावरमलजी सियाटीया एक अच्छे श्रावक थे और आपको कई थोकड़ा बोलचाल भी याद थे । बस ! आप यही चाहते थे, थोकड़ों का अभ्यास शुरुकिया, जितूने थोकड़े बख्तावरमलजी को आते थे, वे सबके सब आप सीख गये और बदले में आपने अपने थोकड़े उनको सिखादिए। फूलचन्दजी एक अच्छे क्रियाशील साधु थे । आपके पास छगनलालजी और कन्हैयालालजी दो साधु और भी थे, फूलचन्दजी शरीर से कमजोर थे और आपके व्याख्यान में लोगों को रस बहुत कम आया करता था। कभी २ श्रावकों के आग्रह से हमारे चरित्र-नायकजी व्याख्यान दिया करते थे, आपके व्याख्यान से सब लोग संतुष्ट थे, और बार २ कोशिश करके श्राप से ही व्याख्यान दिलवाया करते थे। रिखबदासजी रातड़िया और बख्तावरमलजी सुराण ने आप के आज्ञापत्र के लिए बहुत प्रयत्न किया । आखिर में वे सालावास
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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