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आज्ञा के लिये बीसलपुर जाना
लम्भ दे रही हैं । किन्तु कई मनुष्य जो आपके सामने जवानी में मर गये हैं, क्या वे कभी मेरी भांति आकर मुँह बतलाते हैं ? इत्यादि बहुत उपदेश दिया। और कहा कि मैं भिक्षा के लिये आया हूँ यदि योगवाई हो तो भिक्षा दीजिये। इस पर माताजी ने शान्त होकर अपने हाथों से आहार पानी दिया, फिर मुनि श्री अपने स्थान पर चले गये।
आपके संसारी पक्ष के मामाजी चांदमलजी थे। वे भी मुनिश्री के पास आये। जो कुछ कहना था उन्होंने भी कहा ! आखिर आपने कहा कि मैंने तो दीक्षा ले ली है, अब आपके काम का तो हूँ नहीं, किन्तु आज्ञा बिना साधु अपने पास में नहीं रखते हैं। अतः मैं इसलिये आया हूँ कि आप माताजी को समझा कर उनसे आज्ञा पत्र लिखबादें । इतने में माताजी भी वहीं आगये और चांदमलजी ने सब बात कही। इस पर माताजी ने कहा कि गणेशमल तो दिसावर है, बीनणी ( राजकुंवर) अपने पीहर सालावास है, अतः आज्ञा देना मेरे हाथ की बात नहीं है, यदि आज्ञा की जरूरत ही है तो सालावास जाकर बीनणी से ले आओ। ____आपने सोचा कि यहां तो आज्ञा होने वाली नहीं है, फिर देर करने से क्या फायदा । अतः आपने जोधपुर जाने का निश्चय कर लिया और चांदमलजी ने वहां से सालावास समाचार कहला दिया कि गयवरचन्दजी यहां आये हैं, और कल रवाना होकर जोधपुर जावेंगे।
श्राप दूसरे ही दिन बिहार कर जोधपुर गये, और आउवा की हवेली में जहां साधु धनराजजी ठहरे हुए थे, वहीं उनके