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आदर्श-
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मनुष्य ने अपनी ऋद्धि, सम्पत्ति, और कुटुम्ब को छोड़कर हमारे कहने से दीक्षा ली है; उसको इस प्रकार निराधार करके अकेला छोड़ दें, इत्यादि । इस विचार ही विचार में करीब १२ बज गये किन्तु बीसलपुर जाने के लिए जीव हिचकिचाता रहा ।
- ज्ञान.
आपने बीसलपुर जाने का विचार स्थगित कर वहाँ से पालासनी जाना निश्चय किया, जो बोसलपुर से एक मील है । पालासनी पहुँचते ही वहाँ से बीसलपुर समाचार पहुँच गया कि गयवरचंदजी आज पालासनी आये हैं तब बीसलपुर से ४-५ श्रावक ये और कहा कि आप बीसलपुर पधारें, आपकी आज्ञा के लिए हम कोशिश करेंगे।
यहाँ ही गये ।
उसी दिन शाम को वे बीसलपुर गये, रात्रि में सब लोग वन्दन करने को एवं मिलने को आये। सुबह व्याख्यान हुआ जिसको सुनकर लोग बड़े हो प्रसन्न हुए । व्याख्यान के बाद गौचरी गये तो सबसे पहले अपनी माता के माताजी, पहिले तो खूब रोई बाद में उपालम्ब देते हुए कहा कि वाह ! तुमने बहुत ठीक किया ? अपने पिता के बचनों को भी ठीक पाला अरे, हमारी नहीं, किन्तु इन छोटे-छोटे तुम्हारे भाइयों की भी तुम को दया नहीं आई इत्यादि । फिर कहने लगी कि अब तुम्हारी माता के कलेजे में दाह लगाने को यहां क्यों आये हो, चले जाओ, मैं तुम्हारा मुंह देखना तक भी नहीं चाहती ।
नहीं चाहती हो,
गयवर० - खैर, आप मेरा मुंह देखना किन्तु मैं तो आपका मुंह देखने को आया हूँ, पूज्य माताजी, सब जीव कर्माधीन हैं, कोई किसी का भला बुरा नहीं कर सकता । भला मैंने तो दीक्षा ली है और आप इतने दुःख के साथ उपा