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________________ १५ - हमारे चरित्र नायकजी की स्वयमेव दीक्षा हमारे चरित्र नायकजी और भंडारीजी बीसलपुर का पत्र लेकर पूज्यजी के पास आये और सब हाल कह कर पूछा कि अब क्या करना चाहिये ! पूज्यजी ने कहा कि हमको तो कोटे की तरफ जाना है, स्वामी मोतीलालजी जवाहिरलालजी नीमच में हैं, वहां जाकर स्वयं दीक्षा लेकर कोटे की तरफ मेरे पास आ जाना । गयवरचन्दजी ने कहा कि नीमच जाने की क्या जरूरत है, मैं आपके समीप ही स्वयं दीक्षा लेकर आपके साथ कोटे चल सकता हूँ, किन्तु पूज्यजी लोकापवाद से डरते थे, अतः आपको नीमच भेज दिया । आपके सिर पर बड़े २ बाल बढ़े हुए थे । गृहस्थ होने पर भी साधु के वेष के कारण नाई से हजामत करवाना नहीं चाहते थे, किन्तु श्राप लोच करना भी नहीं जानते थे । अतः जवाहिरलालजी महाराज से कहा कि, “हमारा लोच आपके किसी साधु से करवा दीजिये" । इस पर उन्होंने कहा कि, "जब तक तुम हमारे पास से दीक्षा न ले लो, तब तक हम लोच नहीं कर सकते हैं ।" “खैर, आप हमको लोच करने की रीति बतला देवें, तो मैं खुद कर लूंगा ।" किन्तु उन कठोर हृदय वालों ने रीति तक नहीं बतलाई, क्योंकि इस कार्य में उनको लाभ भी क्या था । कारण, हमारे चरित्र नायकजी दीक्षा लेते थे पूज्यजी के पास, फिर जवाहरलालजी सहायता कैसे दे सकते थे । यही तो उदारता का नमूना है । आखिर आपने बालों को पानी से गीले कर उस पर राख
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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