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________________ रतलाम में दो मास की स्थिरता राजकुँवरः-अभी मैं श्रारजियों के यहाँ सुनकर आई हूँ। पतिः-इससे क्या हुआ, लोग तो ऐसे ही अफवाह फैला देते हैं । शायद अपन लोग यहाँ ठहर गये इसलिए लोगों ने बात उड़ादी होगी? राजकुँवरः-लोगों ने क्या, खास पूज्यजी महाराज ने आर. जियों से कही है। पतिः-मुझे इस बातपर विश्वास नहीं है कि पूज्यजी ने कही हो । राजकुंवरः-खैर कुछ भी हो, मैं तो एक क्षणभरभी यहाँ नहीं ठहरूँगी, आप मुझे बीसलपुर पहुँचादें, बाद आप जैसा ठीक समझे वैसा ही करें। ___पतिः-आपकी ऐसी ही इच्छा है तो कल ही बीसलपुर चलो, ऐसा कहने से राजकुँवर का दिल थोड़ा बहुत शान्त हुआ और रात्रि भर स्नेह पूर्ण व्यतीत हुई । सुबह हुआ और राजकुँवर ने कहा, चलो रवाना होओ। पति:-रसोई बनालो, बाद रात्रि की गाड़ी से चलेंगे, राज कुँवर ने रसोई बनाई, दोनों ने भोजन किया, बाद थोड़ी देर में एक कागज लाकर राजकुँवर को पढ़ाया कि यह दिसावर का कागज आया है और मुझे बुलाया भी है; अब तुम्हारी इच्छा बीसलपुर जाने की हो तो पहिले आपको बीसलपुर पहुँचा दूँ और मेरे साथ चलने की इच्छा हो तो मैं २-४ दिनों में जाऊँगा, मेरे साथ चलिए। : पत्नी:-औरतें हमेशा पति के पास रहना हो पसंद करती है, तदनुसार गजकुंवर ने कहा कि यदि आप २-४ दिन में ही यहाँ से रखाना होना चाहते हैं तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ। ठीक है।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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