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________________ आदर्श-ज्ञान के सिवाय तेरा संसार में कोई नहीं है पर देख, ये बीसलपुर वाले पुवक सब सामग्री और स्त्री के होते हुए भी दीक्षा ले रहे हैं इत्यादि, बाद आरजियां अपने मकान पर आई, रात्रि में प्रतिक्रमण के पश्चात् बात ही बात में आरजियों के मुंह से निकल गया कि देखो बाई, बोसलपुर वाले गयवरचन्दजी अपनी पत्नी के साथ पूज्य महाराज के उपदेश से दीक्षा लेते हैं, धन्य है इस अवस्था में दीक्षा लेने वाले को आदि । मकान में चारों ओर अंधकार था, राजकुँवर भी वहीं थी, उसने दीक्षा का नाम सुना तो एक दम हृदय में दावानल भभक उठा । बैठका ( श्रासन ) वहीं डालकर वह सीधी मकान पर आई, सेविका मोजूद थी, वर्तन वगैरह जिन लोगों के लाये थे बे सब पहुँचा दिये और विस्तर वगैरह बांध कर प्रस्थान की सब तैयारी करली तथा मकान के द्वार बंद कर खूब फिक्र में बैठी हुई अपने पति देव की राह देख रही थी। सदैव की भांति ११ बजे गयवरचंदजी मकान पर आये तो मकान के दरवाजे बंद पाये और मकान में न देखा सेविका का चिह्न और न पाया दीपक । मकान के किवाड़ खड़खड़ा के पुकारा कि दरवाजा खोलना ! राजकुँवर ने दरवाजा खोला और आप अन्दर गये तो राजकुँवर बड़े ही दुःख के साथ रोने लगी; आपने मधुर वचनों से समझाया और रोने का हाल पूंछने पर राजकुंवर ने कहा किः-आप बड़े ही विश्वासघाती हैं जो कि मुझ अबला से भी विश्वासघात किया है। - पतिः-क्यों मैंने आपसे क्या विश्वासघात किया है? राजकुँवरः-आप दीक्षा लेने को तैयार हुए हैं? पतिः-आपको किसने कहा ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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