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________________ ४१ रतलाम में दो मास की स्थिरता ने अपनी राजगद्दी और स्त्रियों को त्याग कर दीक्षा ली है, क्या देखते हो मनुष्य जन्मादि उत्तम सामग्री बार बार मिलना मुश्किल है, परिणामों को स्थिर करलो । गयंवरः — पूज्य महाराज आपका कहना तो अक्षरशः सत्य हैं, पर क्या करूँ पहिले भी मैंने दीक्षा की बात निकाली पर भोग कर्म के उदय होने से दीक्षा नहीं ले सका और दुनियां में इसके विपरीत मेरी हंसी हुई । पूज्यजी - खैर, जैसी तुम्हारी मर्जी, किन्तु अभी चतुर्माण के दो मास शेष रहे है, तुम यहाँ ठहर कर ज्ञानाध्ययन करो और व्याख्यान सुनो, आगे जैसी तुम्हारी इच्छा । गयवरः — पूज्य मैं आपके कथन को शिरोधार्य करता हूँ । पूज्यजी : - उसी समय थोकड़ा के बोल चाल सीखने के लिए आपको थोड़े से बोल दिए और कहा कि इनको कण्ठस्थ कर श्याम को वापिस सुना देना । गयवर, पूज्यजी के वचनों को तथास्तु कहकर वन्दना कर चल दिया । ११ - रतलाम में दो मास की स्थिरता हमारे चरित्रनायकजी के हृदय ने पुनः पल्टा खाया, व्रतभंग के भय ने तो आपको वैभ्रांत बना दिया आपने सोचा कि बिना दीक्षा के यह पाप छूट नहीं सकता है, पर दीक्षा लेना भी कोई मामूली बात नहीं है, इस विचार में दिन बीत गया, रात्रि में पूज्यजी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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