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________________ आदर्श-ज्ञान ३२ (१) कच्चे पानी का सर्वथा त्याग (२) कच्ची हरी लीलोती का सर्वथा त्याग (३) रात्रि-भोजन का सर्वथा त्याग (४) मैथुन का सर्वथा त्याग, इनको चारों खन्ध कहते हैं । हमारे चरित्र नायकजी ने अपने वैराग्य की धुन में इन चारों खन्धों का त्याग कर दिया। ____ इधर मुनि रत्नचंदजी के अकारण उपद्रव और गर्भपतन ने आपके विचारों में इतना परिवर्तन कर दिया कि आपके हृदय से दीक्षा को भावना बिल्कुल बिदा हो गई। अब तो आपने संसार में रहने का निश्चय कर लिया । किन्तु २१ वर्ष की जवान उम्र वा संसार में स्त्री सहित रहना और चारों खन्धों का पालन करना यह एक विकट समस्या आपके सामने आ उपस्थित हुई। आखिर. इस निर्णय पर पहुँचे कि बिना संसार छोड़े चार खन्ध पालना मुश्किल है । फिर कभी वह शुभ दिन अवेगा कि मैं इन चारों महा खन्धों को पालन करुंगा अभी तो इन खन्धों को एक डिब्बी में बँध कर सुरक्षित स्थान में रख देता हूँ। ___ लोक लज्जा भी एक ऐसी वस्तु है कि अब आप अपने घर से बाहर भी नहीं निकल सकते थे, यदि कोई घर पर भी आता तो लज्जा के मारे उससे मिल भी नहीं सकते थे। आखिर चैत्र बदी ७ के दिन रात्रि में आपने अपने पिताश्री के पास जाकर सब हाल कह सुनाया कि अब मेरी इच्छा दीक्षा लेने की नहीं है, पर कल दिशावर जाने का विचार किया है, पीछे का सब कार्य आपके भरोसे है। घर में जो कुछ माल है अथवा लेन देन है उसकी व्यवस्था श्राप ही के जिम्मे है। मुताजी को फिर विश्वास नहीं आया, पिछला काम सब
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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