SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिशावर गमन कर लेवेंगे, किन्तु मैं तुम्हारे साथ चलकर टिकट कटाकर रेल गाड़ी में बिठा दूँ तब ही मुझे विश्वास आवेगा। गयवरचंद ने कहा आप विश्वास रखिये मैं सब सच्चे हृदय से कहता हूँ। इस पर भी मुताजी को विश्वास न हुआ, वे अपने प्रिय पुत्र को लेकर जोधपुर पहुंचे और अपने हाथों से अहमदाबाद का टिकट ले आये तथा एक तार अहमदाबाद केसरीमलजी बागरेचा, जो हमारे चरित्र नायकजी के सुसराल पक्षमें साले लगते थे, दे दिया कि गयवरचंद इस गाड़ी से अहमदाबाद आता है, बस गाड़ी हँकने के बाद मुताजी अपने घर आये और राजकुँवर को अपने मकान पर बुलाकर धैर्य के साथ अपने पास रख ली । गयवरचंद के राजो-खुशी अहमदाबाद पहुंचने का पत्र आ.जाने से सबके दिल को संतोष हो गया। .. हमारे चरित्रनायकजी चार दिन तक तो वहाँ मेहमान की तरह रहे, बाद आपने वहाँ से वबई जाने का विचार किया परन्तु वे लोग श्रापको कब जाने देने वाले थे। उन्होंने कहा कि श्राप १ वर्ष तक तो यहाँ चाहे हमारे साथ ( शामिल ) चाहे स्वतंत्र व्यापार करो जिससे. कि हमको पूर्ण विश्वास होजाय कि आप संसार में रहोगे । अतः आपको फिलहाल हम जाने नहीं देंगे । . . .. केसरीमलजी, मुलतानमलजी, प्रतापमलजी, अचलदास जी आपके बड़े श्वसुर के पुत्र साले लगते थे। जसराजजी आपके साद और कालीदास तेजाजी वगैरह आपके संबंधो लगते थे इन ससुराल वालों की अध्यक्षत्र में रह कर आप व्यापार करना नहीं चाहते थे और यही कारण था कि आपने बंबई जाने का निश्चय कर लिया था।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy