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________________ आदर्श - ज्ञान २६ मासभी पूर्ण नहीं हुआ था, इसलिए मैं नहीं आसकी । यदि मुझे ऐसी बीमारी की खबर होती तो मैं एक क्षण भरभी नहीं रुकती; अतएव मुझ अज्ञानिनी की इस मूर्खता के लिए आप क्षमा करें, और दीक्षा की बात को यहीं पर रोक देवें 1 हे सुशीला ! आपका मोह वश कहना कदाचित् ठीक है, पर इस विश्व में सब माया चञ्चल है, कुटुम्ब सब स्वार्थी है, आयुष्य का क्षणमात्र का भी विश्वास नहीं है । यदि बीमारी के समय ही मेरा देहान्त हो जाता तो आप क्या करतीं; यदि श्रापका मुझसे टल प्रेम है तो आप भी कमर कसकर दीक्षा के लिए तैयार हो जाइये, संसार में जन्म लेना और मरना तो सब जीवों के लिए समान है, पर विशेषता उन महानुभावों की है जिन्होंने कि तप संयम द्वारा अपना कल्याण किया करते और करेंगे, अतएव आयुष्य का पता नहीं है आप भी दीक्षा के लिए तैयार होजाईये । प्राणेश! मैं दीक्षा में कुछ भी नहीं समझती हूँ तथापि प से घनि प्रेम होने के कारण मैं आपके साथ होने को तैयार हूँ । पर मेरे उदर में गर्भ स्थित है इसके लिए क्या होगा ? कुछ नहीं तो जब तक यह संकट न टल आय तब तक तो आप दीक्षा का नाम मुँह से न निकालें क्योंकि जब मैं दीक्षा का नाम सुनती हूँ तो अपनी मृत्यु को ही सामने देखती हूँ । जब हमारे चरित्रनायकजी ने अपनी पत्नी के शब्दों में गर्भ का होना सुना तो आप कुछ विचार में पड़ गये, फिर भी आपने सोचा कि सब जीव कर्माधीन हैं, अतएव जो कुछ भगवान ने ज्ञान से देखा है वही होके रहेगा; किन्तु मैंने जो चैत्र कृष्ण ८ को दीक्षा लेना निश्चय किया है वह तो अवश्य दृढ़ रहेगा । तत्पश्चात
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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