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६ - परिणामों का पलटा !
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राजकुँवर ने सेलास में यह संवाद सुना कि पतिदेव तो दीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, बस, यह सुनते ही राजकुँवर के ही क्या सब कुटुम्बियों के होश हवास उड़गये । वे शीघ्र ही गाड़ी लेकर बीसलपुर श्राये, आते ही राजकुँवर ने अपने मकान को एक स्थानक एवं धर्मशाला के रूप में देखा, क्योंकि कांच तस्वीरों का स्थान धार्मिक पुस्तकों ने ग्रहण कर लिया था, तथा पलंग, पथरना, गद्दी, तकिये के स्थान पर काष्ट के तख्ते दीख पड़े । शीतल जल और झारी के बदले धोवन के कुँडे पाये; नित्य नये रसवती भोजन के स्थान पर रूखे-सूखे खाखरे जो आंबिल के काम में ही आते देखे,इतना ही नहीं वरन् राग के स्थान पर वैराग्य देख कर खूब छाती फाड़कर रुदन करने लगी और देने लगी अपने पतिदेव को उपालम्भ |
हे नाथ ! आप यह क्या कर रहे हो, मुझ अबला को किस के भरोसे छोड़ रहे हो, मेरा ऐसा कौनसा बड़ा कसूर हुआ है जिससे कि आप मुझे छोड़ने को तैयार हुए हो, जबकि अप मेरे बिना एक क्षण भर भी नहीं ठहर सकते थे; श्राप कुछ सोच विचार कर कार्य करें। मैं आपको हर्गिज भी जाने नहीं दूँगी। मैंने अपनी समझ से आपका ऐसा कोई कसूर नहीं किया है जो कि श्राप मुझे निराधार छोड़ कर जाने की तैयारी कर रहे हैं ।
प्राणेश्वर ! आपने मुझे बुलाने के लिए गाड़ी भेजी किन्तु मैंने अज्ञानवश यह समझ लिया कि आप मुझे बीमारी के बहाने बुला रहे हैं, मैं एक वर्ष से पीहर गई थी और वहाँ मुझे एक