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तान थई का काव्य वि
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ई प्रभु सन्मुख बोलने की स्तुति (नोट : तीन थुई वाले इस काव्य विभाग को कंठस्थ करें) गुणीजन विषे प्रीति धरूं, निर्गुण विषे मध्यस्थता, आपत्ति हो संपत्ति हो, राखुं हृदय मां स्वस्थता। सुख मां रहुं वैराग्य थी, दुःखमां रहुं समता धरी, प्रभु आटलुं जनमो जनम, देजे मने करुणा करी।।
माता तमे पिता तमे, मुज जीवन ना नेता तमे, सखा तमे भ्राता तमे, सहु जीवना त्राता तमे। चंदा तमे सूरज तमे, त्रैलोक्यना दीपक तमे,
हे नाथ हैयुं दई दिधुं, हवे आजथी मारा तमे।। नयनों में शांति है असीम, मुद्रा भी शांत प्रशांत है, संसार के संताप से, प्रभु दिल मेरा अशांत है, मैं परम शांति पाने को, प्रभु शांति के दरिशन करूँ, ऐसे प्रभु श्री शांतिजिन को मैं भाव से वंदन करूँ।
1 श्री सीमंधर भगवान चैत्यवंदन परम शुद्ध परमातमा, परम ज्योति परवीन। परमतत्त्व ज्ञाता प्रभु, चिदानंद सुखलीन।।1।।
विद्यमान जिन विचरतां, महाविदेह मझार।
सीमंधर आदे सदा, वंदु वार हजार।।2।। जे दिन देखशं दृष्टि में, ते दिन धन्य गिणेश। सूरि राजेन्द्र ना संग थी, काटीश सकल किलेश।।3।।
श्री सिब्दाचल तीर्थ चैत्यवंदन सिद्धाचल वन्दो भवि, सिद्ध अनन्तनो ठाम। अवर क्षेत्रमा अहवो, तीरथ नहीं गुणधाम।।1।।