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पूर्व नव्वाणुं ऋषभजिन, आव्या तीरथ एह । नेम विना सहु जिनपति, फरसे गिरि शुभ नेह || 2 ||
नाम इकवीस जपे भवि, पामे भवनो पार । सूरि राजेन्द्र पणो लही, मोक्ष श्री भरतार || 3 || बासुपूज्य जिन चैत्यवंदन
वासुपूज्य महाराजजी, अवधारो अम आश; दुबल ने देखी करी, बिरुद विचारो खास..।।1।।
तु मुद्रा दरसण थकी, चित्त पावे अति चेन; मिथ्यामति माने नहीं, भमशे बहु भव लेन... ।। 2 ।।
सूरि विजय राजेन्द्रजी संजम ना दातार;
प्रमोद रुची ध्यावे सदा, मिथ्या दूर निवार...।।3।। सीमंधर जिन स्तुति
सीमंधर स्वामी ने वंदन कीजे, श्रेयांस कुलना दीवाजी, पुंडरीक नगरी में प्रभु जन्मे, चोरासी लक्ष आयु पूर्वाजी। सत्यकी माता गुण मणि जाणी, चौदह स्वप्ना अवलोकेजी, रुक्मणि ना पति कहलाये, निजगुण से अरिदल रोकेजी ... ।। 1 ।।
दस क्षेत्रो में जिनवर विचरे, पद कमल में आवे देवो जी नमन कर गुण गरिमा गावे, मुखडु जोई जोई ध्यावेजी । समवसरण रचना वर, छाजे, जिनवर पीठ बिराजेजी,
जग जन्तु हित मधुरी ध्वनि, मालकोष में गाजेजी...।।2।। चौविध श्री संघ स्थापन करते, इंद्राणी मंगल गावेजी, गणनायक लायक पद स्थापे, सब जीवों के मन भावे जी । सूरि राजेन्द्र की वाणी गूंथे, स्याद्वाद् सिद्धांत बतावेजी, विद्याचंद्र यतीन्द्र सूरि से, आतम निर्मल पावेजी...।।3।। शत्रुंजय स्तुति
सकल तीरथमां सोहतुं ए, सिद्धाचल शणगार तो; कर्म का मुग गयाए, अनंता अनंत अणगार तो.....
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