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________________ * अतिमुक्तक (अईमुत्ता मुनि) की माता। जिसने छ: वर्ष की उम्र में बेटे को दीक्षा दिलाई। जिससे नौ वर्ष की उम्र में बेटे को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। * देवकी - जिसने अपने गजसुकुमाल जैसे पुत्र के पास से प्रण लिया कि उसे (देवकी को) संसार की अंतिम माँ बनाना (अर्थात् इसी भव में मोक्ष प्राप्त करें।) * आर्यरक्षित की माता ने बड़ी चालाकी से अपने दोनों बेटों को साधु बनाया। फिर अंत में अपने ____ पति के साथ स्वयं ने भी दीक्षा ली। * अरणिक की माता-साध्वीने साधु जीवन से भटके हुए बेटे को पुनः दीक्षा दिलवाई। कठोर साधु जीवन का पालन दीर्घकाल के लिए न कर सके तो तुरंत अनशन करने की भी सहमति दे दी। मदालसा, अनुसूया, ऐसी कितनी माताएँ है। (ओ.... सर्व माता-पिताओं जयणा एवं दिव्यां की तरह यदि आपकी सर्व प्रिय वस्तु इस जगत में आपकी संतान है, तो उसकी आत्मा पर रहे हुए सुसंस्कारों के आप हत्यारे मत बनना। गर्भ से लगाकर जब तक उनमें सही समझ न आए, अपने पैरों पर खड़े न हो जाए तब तक आप पूरी सावधानी बरतना। जब तक ये नादान है, इनमें समझ की दाढ़ नहीं आती, तब तक उन्हें आप अपने अधीन में रखें। वे आपके आश्रित है। उन्होंने अपना मस्तक आपके अधिकार की सीमा में सुरक्षित रखने के लिए आपको सौंपा है। क्या आप उनके जीवन निर्माण के सम्बन्ध में उपेक्षा करेंगे? क्या आप अमर्यादित जीवन में उन्हें कहीं पटक देंगे? क्या आप उन्हें अति लाड प्यार कर उनके जीवन को उन्नत होने से रोकेंगे? आपकी गोद में रहे उनके मस्तक पर क्या आप कॉन्वेन्ट की घातक छूरी से वार करेंगे? यदि आपका जवाब हाँ हैं तो सुन लीजिए कि आप संस्कारों के हत्यारे कहलायेंगे। आपकी तुलना में उस पशु की हत्या करने वाले कसाई की कोई गिनती नहीं, क्योंकि पशु हत्या करने वाले व्यक्ति से भी महापुण्य से साधना करने के लिए आपके घर में जन्म लेने वाले संतानों के सुसंस्कार की हत्या अति भीषण और भयानक गिनी जायेगी। शिक्षा आदमी को डॉक्टर, वकील या मिनिस्टर आदि बना सकती है, जबकि संस्कार व्यक्ति को इन्सान बनाते हैं। आपकी संतान स्वामी विवेकानंद, शिवाजी, भगतसिंह, धर्मात्मा कुमारपाल, वस्तुपाल, मयणा, सुलसा, मीराबाई या अनुपमा बने, हेमचंद्राचार्य या हीरसूरिजी बने, ऐसी आपकी कोई महत्त्वकांक्षा है तो आज ही अपने बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण करना शुरु कर दे।) ___समय पूर्ण होते ही जयणा ने दिव्या को वापस ससुराल बुला लिया। दिव्या ने समय-समय पर मोक्षा और जयणा से सुझाव लेकर अपनी बेटी का अच्छी तरह पालन-पोषण किया।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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