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दिव्या : मम्मीजी ! आपका आभार में किन शब्दों में व्यक्त करूँ? मेरे तथा मेरे बच्चें के लिए जो हितकर और कल्याणकारी मार्ग आपने बताया है उसके लिए मैं सदा आपकी ऋणी रहूँगी ।
जयणा: बेटा ! तुम कुछ महिनों में पियर चली जाओगी। इसलिए यह सब तुम्हें आज ही बता देती हूँ कि बालक का जन्म होते ही उसके कानों में नमस्कार महामंत्र सुनाना मत भूलना। दिव्या : क्या मम्मीजी नवकार ? आशातना नहीं होगी ?
जयणा : नहीं दिव्या, एक बार नवकार मंत्र बोलने के बाद तुम यदि दूसरी बार पुनः बोलो तो वह आशातना होगी। बेटा एक बात का ध्यान रखना कि बालक का कल्याण चाहने वाली ही वास्तविक माता होती है शेष तो स्वार्थ साधक है। स्वार्थ से प्रेरित ऐसी माताएँ बालक के चरित्र निर्माण में एवं मुक्ति में बाधक बनती है।
दिव्या : मम्मीजी ! मैं एक माँ होकर अपने बच्चें के कल्याण में बाधक नहीं बनना चाहती। इसलिए आपकी बताई हुई हर एक हितशिक्षा को स्वीकार करती हूँ। मम्मीजी, आप मुझे ऐसे आशीर्वाद दीजिए की मैं, मेरा और मेरे बच्चे का भविष्य सुंदर बना सकूँ। (जयणा से आशीर्वाद पाकर दिव्या अपने कमरें में चली गई ।)
(अपनी सासुमाँ से मिली हितशिक्षा के अनुसार गर्भ के व्यवस्थित परिपालन हेतु दिव्या अब मेग्ज़ीन, नॉवल आदि नहीं पढ़ती, ना ही टी.वी. देखती, न राग वर्धक गीतगान का श्रवण करती और ना ही आवेश में आती । न पति का संग करती और न ही कफकारक - पित्तकारक आहार लेती । ना ज्यादा हँसती, ना ज्यादा बोलती और ना ही किसी की निंदा करती यानि कि दिव्या ने सभी अशुभ कार्यों का त्याग कर दिया था। इसके साथ वह नित्य देव- गुरु को वंदन एवं पूजन करती, महापुरुषों के साहित्य का वांचन करती, पाँच प्रकार के यथा अवसर दान देती, व्याख्यान श्रवण करती, 16 प्रकार की भावनाओं का मनन करती, अच्छे-अच्छे मनोरथ करती जैसे कि मैं चारित्र लूँगी, दान दूँगी, मन्दिर बनवाऊँगी, छःरी पालित संघ निकालूंगी, उपधान करवाऊँगी। जयणा तथा मोहित ने भी दिव्या के गर्भपालन में पूर्णतया सहयोग दिया। दिव्या के हर एक दोहद को मोहित पूर्ण करता। साथ ही परिवार के सभी सदस्य दिव्या को हमेशा प्रसन्न रखते। सातवें मास में दिव्या के पियर वाले उसे लेने आये । शुभ मुहूर्त में आशीर्वाद देकर जयणा ने उसे पियर भेजा। देखते ही देखते नौ मास भी पूरे हो गये और दिव्या ने एक लड़की को जन्म दिया। जन्म होते ही दिव्या ने अपनी बेटी को सर्वप्रथम नवकार मंत्र का श्रवण कराया। दिव्या जानती थी कि नवजात शिशु को जन्म के चार घंटों के भीतर छाती से लगाकर अपार प्यार दिया जाए तो भविष्य