________________
लगाती है तो प्रायः उसके बच्चें अंधे, नेत्र रोगी होते हैं। साथ में शीत आहार करती है तो वायु का प्रकोप होता है।
5. गर्भवती स्त्री के अति गरम पदार्थों का सेवन करने से प्रायः बच्चें निर्बल पैदा होते हैं। दिव्या : तभी मम्मीजी ! आप मुझे खाने की हर बात पर कुछ न कुछ हिदायत देती ही रहती है। खानेपीने की इन बातों के पीछे इतना बड़ा रहस्य होगा। यह तो मुझे आज ही पता चला। जयणा : दिव्या ! इन खाने-पीने की बातों के अतिरिक्त गर्भवती स्त्री को निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
1. गर्भवती स्त्री अधिक रुदन न करें। रोने से प्रायः बच्चें की आँखे चपटी, अधिक फिल्मी गीत गान करने से प्रायः बच्चें बहरे (बधिर), अधिक बोलने से प्रायः बच्चें वाचाल तथा अधिक गालियों की - बौछार करने से प्रायः बच्चें दुराचारी पैदा होते हैं।
2. गर्भवती स्त्रियों के अधिक हँसने से प्रायः बच्चों के होंठ एवं दांत काले हो जाते हैं। गर्भवती स्त्री के चाँदनी (खुले स्थान ) पर सोने से प्रायः बच्चें बाड़े (रावणखंडे) पैदा होते हैं।
3. घर वालों को भी गर्भवती स्त्रियों को सदा प्रसन्न रखने का प्रयत्न करना चाहिए। उन्हें बात-बात पर अपमानित कर चिढ़ाना, अथवा उन्हें भयानक, चिन्ताजनक शोक समाचार नहीं सुनाने चाहिए।
4. गर्भवती स्त्री को कुछ परिश्रम एवं विश्राम भी अवश्य करना चाहिए ।
5. गर्भवती का यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो उसे डॉक्टर की सम्मति के बिना कोई दवाई नहीं देनी चाहिए।
6. गर्भवती स्त्री को प्रतिदिन आँवले का मुरब्बा खाना चाहिए। उसमें प्रवाल, वंशलोचन और गलोसत्व आदि मिलाकर खाने से भावि संतान की मस्तिष्क शक्ति बड़ी तेज़ होती है।
7. गर्भवती को सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। साथ ही ग्रहण के समय सुई, कैंची, चाकू जैसे शस्त्रों का उपयोग नहीं करना चाहिए। बाल नहीं संवारना और झाडू भी नहीं निकालना चाहिए। क्योंकि इससे गर्भ पर बहुत बुरा असर होता है।
8. विशेष - गर्भवती स्त्रियों को अपनी इच्छाएँ अतृप्त नहीं रखनी चाहिए। परिवार वाले भी गर्भिणी के मनोभावों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रुप से समझकर उसे पूर्ण करने का प्रयत्न करें। इसी इच्छा का दूसरा नाम है - दोहद । इच्छा के अपूर्ण रह जाने से सन्तान दुर्बल हृदयी व लालची पैदा होती है।