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________________ भूत सवार हो गया है कि वे इस बात को इतनी गंभीरता पूर्वक नहीं सोचती। दिव्या ! गर्भस्थ स्त्री जबजब भी पति के साथ अब्रह्म का सेवन करती है, तब-तब गर्भ में रहे हुए बालक को हथौड़े की मार जितनी पीड़ा सहन करनी पड़ती है। इसलिए तो प्राचीन काल से प्रथम प्रसूति पर पियर भेजने की प्रथा आज भी चली आ रही है। जिससे सहजता से ब्रह्मचर्य का पालन हो जाता है। जब बहुत दिनों बाद पति पियर में मिलने आए तब पति को देखकर पत्नी को जो आनंद और ताज़गी का ऐहसास होता है, वह सीधे गर्भस्थ शिशु में स्थानांतरित हो जाता है। कभी मान लो कि सगर्भा स्त्री ससुराल में ही रहकर अपने मातृत्व से गर्भ में पल रहे संतान के पोषण के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा रही हो, तब उसके पति को भी अब्रह्म का सेवन कर अपनी पत्नी की शक्ति नाश करने का अकार्य कदापि नहीं करना चाहिए। साथ ही उन्हें देह संबंध करते समय भी पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए वर्ना उसका असर भी गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। दिव्या : मम्मीजी ! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा अकार्य करने से मेरे बच्चे को इतनी पीड़ा होगी। सचमुच पुरानी प्रथाओं का कितना बड़ा महत्त्व होता है। आपने मुझे सही समय पर योग्य हितशिक्षा दी है। मैं और मोहित इस बात का पूर्णतया पालन करेंगे। (जयणा ने दिव्या को कितना वात्सल्य दिया होगा कि जीवन के इस अहम् मोड़ में दिव्या ने किसी डॉक्टर के पास न जाकर अपनी सासुमाँ के पास से सुझाव लेना ज्यादा लाभदायक समझा। साथ ही दिव्या ने भी अपनी सासुमाँ से कितना समर्पण भरा व्यवहार किया होगा कि निजी जिंदगी से जुड़े ऐसे सवालों का जवाब देते हुए भी जयणा को हिचकिचाहट महसूस नहीं हुई।) दिव्या : लेकिन मम्मीजी ! आपने जो देह संबंध करते समय सावधानी की बात कही है। आपकी उस बात पर मुझे तो विश्वास हो गया है, लेकिन लोग इस बात को माने यह बहुत मुश्किल है। इसलिए कोई प्रमाण हो तो बताइये? जयणा : दिव्या ! पति के साथ देह संबंध के क्षणों में की हुई भूल का कितना गहरा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। वह प्राचीन एवं वर्तमान की कई घटनाओं द्वारा हम देख सकते हैं। जिससे तय होता है कि सगर्भा स्त्री की छोटी-सी भूल का भी गर्भ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ___ 1. रुप और गुणों की अंबार द्रौपदी स्वभाव से क्रोधी क्यों थी? वह क्रोध के भयानक आवेश में आकर आग जैसी क्यों बन जाती थी? अपने पति युधिष्ठिर को बार-बार अपशब्द क्यों सुनाती थी? इसका एक मात्र कारण उसके पिता द्रुपद थे। क्योंकि उन्होंने अपने बदन से क्रोधाग्नि की ज्वाला को ठंडी
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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