SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किये बिना ही अपनी पत्नी के साथ देह संबंध कर लिया एवं उसी वक्त उनकी पत्नी सगर्भा बनी। बाद में उन्होंने द्रौपदी को जन्म दिया। वीर्य में व्याप्त पिता का क्रोध उनकी लाड़ली द्रौपदी की रोम-रोम में व्याप्त हो गया। 2. राजा कर्णदेव ने रानी मीनलदेवी के साथ देह संबंध के क्षणों में परस्त्री के साथ कामवासना की कल्पना की। रानी को गर्भ ठहरा, उन्होंने पुत्र को जन्म दिया। वही पुत्र आगे चलकर महापराक्रमी सिद्धराज जयसिंह बना। उसके पराक्रम की गाथाएँ इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी गई । परंतु वह राणकदेवी पर अति कामुक था। पिता की एक भूल के कारण उसके स्वर्णाक्षरों में लिखे इतिहास पर पानी फिर गया। अब तुम ही बताओ दिव्या इसमें दोष किसका ? पुत्र का या पिता का ? 3. रक्त एवं वीर्य के साथ माँ-बाप के संस्कार बच्चों में उतरते हैं। इस बात पर औरंगजेब को भी विश्वास था। इसी आधार पर एक दिन राजसभा में एक आठ साल की लड़की के पिता होने का दो व्यक्तियों ने दावा किया। उसमें एक लेखक और दूसरा सैनिक था। फैसला करने के लिए बादशाह ने पहले . उस लड़की को तलवार उठाने के लिए कहा। वह कोशिश ही करती रही लेकिन उठा न सकी और जैसे ही उसे बोतल से कलम में स्याही भरने के लिए कहा गया। उसने वह काम सहजता से कुशलता पूर्वक कर दिखाया। यह देखकर औरंगजेब ने यह लड़की लेखक की है, ऐसा फैसला सुनाया। 4. वर्तमान काल में यूरोप में घटित एक घटना के अनुसार देह संबंध की क्षणों में दीवार पर टंगी काले हब्शी व्यक्ति का चित्र देख रही, गोरी यूरोपियन स्त्री की संतान भी काली हब्शी जैसी पैदा हुई। बालक के जन्म पर पति-पत्नी दोनों को आश्चर्य हुआ क्योंकि वे दोनों यूरोपियन वं गोरी चमड़ी वाले थे। पति ने पत्नी पर संदेह किया और उस पर दुराचारिणी होने का आरोप लगाया। मामला कोर्ट तक पहुँचा। जज ने दोनों पक्षों की बातों को ध्यान से सुना । उन दोनों के शयनकक्ष की जाँच की। दोनों से विस्तार से बातचीत की। बातचीत के समय पत्नी ने कहा कि हर रात सोने से पहले वह दीवार पर टंगी तस्वीर ही उसकी आँखों के सामने होती थी और सहवास के समय भी उसकी नज़रें उस तस्वीर पर ही थी। इससे जज समझ गया कि बच्चा हब्शी जैसा काला कैसे पैदा हुआ तथा स्त्री निर्दोष साबित हो गई। कहने का तात्पर्य यह है कि माता जो सोचती है, देखती है, उसका असर गर्भ पर पड़े बिना नहीं रहता । दिव्याः मम्मीजी ! आपके इन दृष्टांतों से मेरी ही नहीं बल्कि सभी लोगों के मन में रही शंकाओं का समाधान हो जाएगा।
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy