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________________ 6. वैसे तो तुम रात्रि भोजन आदि नहीं करती हो पर फिर भी इन नौ मास में तो सगर्भा स्त्रियों को रात्रि में भोजन एवं कंदमूल का सर्वथा त्याग करना ही चाहिए। 7. तुम अपना स्वभाव गंभीर, प्रसन्नचित्त, उदार, सहिष्णु, प्रमोद आदि गुणों से ओतप्रोत बनाओ। ___इन सब के पीछे तुम्हारे मन में यह दृढ संकल्प होना चाहिए कि इन सब सुकृतों के प्रभाव से मेरी संतान परमात्मा एवं गुरुजनों की भक्त बनें, जीवमात्र की मित्र बनें, उसका जीवन पवित्र (अकलंकित) रहें। होने वाली संतान बालिका हो तो वह लज्जा गुण से सुशोभित बने और यदि वह बालक हो तो सर्व लक्षणों से युक्त वीर पुरुष बनें। ___ऐसे संकल्प पूर्वक की गई प्रत्येक क्रियाओं की इतनी तीव्र और गहरी असर बालक की आत्मा पर होती है कि वह बालक प्रायः महान ही पैदा होता है। वह गुणों का भंडार बनता है। जिसमें अवगुण ढूंढने पर भी नहीं मिलते। दिव्या : मम्मीजी ! जैसा आपने बताया है वैसे धर्ममय वातावरण में मैं अपने नौ मास बिताने की पूरी कोशिश करूँगी। लेकिन इसके अलावा किन प्राकृतिक बातों का मुझे ध्यान रखना होगा। क्या बाहरी प्रकृति का असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है ? जयणा : हाँ बेटा ! बाहरी प्रकृति का असर भी गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। प्राकृतिक बातों को ध्यान में रखकर प्राचीन काल में सगर्भा स्त्री को : 1. विभिन्न पुष्पों से भरे बगीचे में बिठाया जाता था, ताकि उसका मन प्रसन्न रहे एवं निरंतर हरियाली को देखते रहने से उसकी संतान की आँखें तेजस्वी बनें। 2. उसे ध्रुवतारे के दर्शन करवाए जाते थे ताकि उसके स्थैर्य के दर्शन से बालक धैर्यवान बनें। 3. समुद्र की गंभीरता को निहारने वाली स्त्री का बालक समुद्र जैसा गंभीर बनता है। . 4. पूनम के चाँद को निहारने वाली माता का बालक स्वभाव से सौम्य बनता है। 5. सिंह की गर्जना सुनने वाली माता का बालक सिंह जैसा पराक्रमी और शूरवीर बनता है। इस प्रकार बाहरी प्रकृति का असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। इसके अलावा और एक बात का तुम विशेष ध्यान रखना। दिव्या : क्या मम्मीजी? जयणा : इन नौ मास के दौरान तुम भूलकर भी अब्रह्म का सेवन मत करना। दिव्या : मम्मीजी ! अन्य बातें तो बराबर है पर अब्रह्म से गर्भस्थ शिशु का क्या लेन-देन? जयणा : बेटा ! यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात है पर आजकल की मॉडर्न स्त्रियों पर मॉडर्निटि का ऐसा
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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