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संस्कार दिए होंगे कि आज ससुराल में भी वे सबकी प्रिय है । मम्मी मेरी भी यह इच्छा है कि भविष्य में मेरी सन्तान भी ऐसी बनें। इसलिए मेरे मन में यह जिज्ञासा है कि गर्भस्थ शिशु को संस्कार किस प्रकार देना ?
जयणा : बेटा ! तुम्हारी जिज्ञासा बहुत ही अच्छी है। आज कल तो जन्म के बाद भी माता-पिता को संस्कार देने के विचार नहीं आते और तुम तो गर्भ में रहे हुए बालक को संस्कार देने की बात कर रही हो। तुमने एकदम सही समय पर प्रश्न किया है, क्योंकि गर्भ रुप में रहे हुए जीव पर नौ मास के दरम्यान माता की छोटी से छोटी हलचल का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी के आधार पर कोई भगवान बनता है तो कोई शैतान । कोई स्थूलिभद्र या मयणासुंदरी बनते है तो कोई शाहरुख या ऐश्वर्या । यानि कि यह बात माता पर ही निर्भर है कि भविष्य में उसका पुत्र क्या बनें ?
दिव्या : मम्मीजी ! यदि ऐसी बात है तो मेरी भी इच्छा है कि मेरे गर्भ में पल रहा बालक संस्कारित बने। इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? मुझे किन-किन बातों का ध्यान देना होगा ? यह सब आप मुझे बताईए?
जयणा : गर्भ में पल रहे बालक को संस्कारित बनाने के लिए माता के आचार, विचार, व्यवहार आदि सब अच्छे होने चाहिए क्योंकि इन सब बातों का असर माता के गर्भ में रहे जीव पर अव्यक्त रुप से पड़ता है । इसलिए कहते है माता बनने वाली हर स्त्री को, जिसे उसकी संतान बहुत ही प्रिय हो उसे गर्भावस्था के नौ महिनों में कुछ धार्मिक एवं प्राकृतिक बातों का ध्यान रखना चाहिए ।
दिव्या : मम्मीजी ! वे धार्मिक बातें कौन-सी हैं ?
जयणा : बेटा ! नौ मास को धर्ममय वातावरण में व्यतीत करने के लिए तुम्हें निम्न नियमों का पालन
करने की कोशिश करनी होगी। जैसे कि
1. तुम सवा लाख या जितने हो सके उतने नमस्कार महामंत्र का जाप करो ।
2. नित्य परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा करो एवं त्रिकाल भक्ति करो।
3. समय मिलने पर धार्मिक स्वाध्याय करो या महापुरुषों के चरित्र पढ़ो। इससे तुम्हारा बच्चा महापुरुषों
की तरह संस्कारित होगा ।
4. साथ ही साथ गरीबों को दान दो, अतिथियों का सत्कार करो ।
5. तुम गुरुजनों का तथा बड़ों का पूजन - बहुमान इत्यादि कार्य करती रहो।