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________________ डेढ़ घंटे सो जाती है। मेरी बेटी के संस्कारों के बारे में तो क्या कहुँ ? नित्य एक सामायिक तो उसका ।। नियम है और ससुराल में जाकर भी उसने इस नियम को कायम रखा है। सोकर उठने के बाद वह एक सामायिक कर लेती है। सामायिक करके मार्केट चली जाती है सब्जी खरीदने। वहाँ से आकर रसोई में काम करवाकर वापस सब खाना-खाने बैठ जाते हैं। रात्री भोजन तो उसने जिंदगी में कभी किया ही नहीं। फिर शाम को अपनी सासु के पैर दबाने बैठ जाती है। उसकी सासु तो उसकी प्रशंसा करते नहीं थकती।” बोलो सुषमा मेरा दृष्टांत सुनकर तुम्हें क्या महसूस हुआ। बेटी-बहू दोनों की दैनिक क्रिया एक जैसी। लेकिन बेटी होने से वह जो भी करे अच्छा लगता है और बहू होने से वही काम पसंद नहीं आया। सुषमा : हाँ ! जयणा तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। मुझे पता था कि डॉली ने जो किया वह गलत था फिर भी मैंने उसी का पक्ष लिया और बहू बिचारी निर्दोष होने पर भी मैंने उससे गलत व्यवहार किया। मैंने बेटी के साथ दिल का और बहू के साथ दिमाग का प्रयोग किया। जयणा अब मैं अपनी यह भूल सुधारना चाहती हूँ। तुम मुझे मार्गदर्शन दो कि मुझे अब क्या करना होगा? जयणा : सुषमा ! आज तक तुमने उसके साथ सासु जैसा व्यवहार किया। बस, अब तुम उसकी सासुमाँ बन जाओ। देखना तुम्हारा व्यवहार तुम्हारी बहू को भी बेटी बना देगा। तुम उसे अपनी बेटी से भी अधिक प्रेम दो, उसे समय-समय पर पियर भेजो, घूमने भेजो। वह काम करने आए तब कहा करो, "बेटी अब तो तुम्हारे घूमने-फिरने के दिन है। काम तो तुम्हें जिंदगी भर करना ही है।" बेटे के सामने अपनी बहू की, उसके काम की ,उसके खाने की प्रशंसा करो। हाथ खर्चे के लिए उसे आगे से पैसे दो, उसके पियर वालों से भी अच्छे संबंध रखो। देखना सुषमा, तुम उसे प्रेम दो और बदले में वह तुम्हें प्रेम न दे, यह तो हो ही नहीं सकता। सुषमा, “जे पडावे बहूनी आँखमां आँसू अनु नाम सासु" इस कहावत को अपने जीवन में सार्थक मत होने देना। सुषमा : जयणा ! मैं तुम्हारी कही हुई सारी बातों को अमल करने की पूरी कोशिश करूँगी। जयणा : सुषमा ! एक मुख्य बात तुम तुम्हारी बहू को इतना प्रेम दोगी तो वह निश्चित ही तुम्हें घर की सारी जिम्मेदारियों से निवृत्त कर देगी। परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि तुम फिर से किटी पार्टियों में तथा शॉपिंग में लग जाओ। सुषमा अब भी सम्भल जाओ। इस प्रकार एशो आराम की जिंदगी का नतीजा तुमने साक्षात् देख लिया है। कही ऐसा न हो कि डॉली की तरह भविष्य में तुम्हारे बेटे और बहू भी तुम्हारे हाथों में न रहे। तुम सुखी बनने की इच्छा रखती हो परंतु सुखी बनने के लिए पुण्य चाहिए
SR No.002439
Book TitleJainism Course Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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