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और पुण्य प्राप्ति के लिए धर्म करना आवश्यक है। यह अनमोल मानव भव मिला है। अब भी समय है जीवन को धर्म मार्ग में लगाकर सार्थक करो। वर्ना कहीं ऐसा न हो कि आनेवाले भव में तुम्हें मनुष्य शरीर ही न मिले। अतः अब धर्ममय वातावरण में अपना जीवन व्यतीत कर अपनी बहू को भी धर्म में जोड़ो। सुषमा : सचमुच जयणा, आज तक तुमने मेरे हित के लिए जो कुछ भी कहा मैंने हमेशा उसकी अवगणना ही की थी। पंरतु आज मुझे ऐसा लग रहा है कि यदि मैंने तुम्हारी बात मानकर धार्मिक जीवन व्यतीत किया होता और डॉली को भी संस्कार दिए होते तो मुझे कभी भी दुःखी नहीं होना पड़ता। आज से तुम्हारी हर एक हितशिक्षा को जीवन में उतारकर अपने जीवन को सुधारने की पूरी कोशिश करूँगी। जयणा पता नहीं चल रहा कि किन शब्दों में तुम्हारा आभार व्यक्त करूँ। जयणा : सुषमा ! मुझे तुम्हारे आभार की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे कहे अनुसार यदि तुम धर्म से जुड़ जाओ तो मैं मानूँगी की मेरा कहना सार्थक हुआ।
(इस प्रकार हितशिक्षा लेकर सुषमा अपने घर आई। आज उसके चेहरे पर एक अलग ही प्रसन्नता थी तथा हृदय में एक अनोखा आनंद था। यह आनंद हजारों किटी-पार्टियाँ एटेन्ड करने पर भी उसे कभी महसूस नहीं हुआ। घर आकर सुषमा हॉल में बैठकर सोच रही थी कि मैं खुशबू से बात करने की शुरुआत कैसे करूँ? और अचानक मिक्सी में चटनी बनाते समय खुशबू का हाथ मिक्सी की ब्लेड से कट जाने के कारण खून निकलने लगा। दर्द के कारण खुशबू जोर से रोने लगी। एक ओर हाथ कटने का दर्द और दूसरी ओर अभी मॉम आकर चिल्लाएँगी कि देख कर काम नहीं कर सकती थी, इस बात का डर खुशबू के चेहरे पर साफ झलक रहा था। खुशबू के रोने की आवाज़ सुनकर सुषमा तुरंत वहाँ आई।) सुषमा : अरे बेटा ! तुझे तो इतनी लगी है, इतना खून आ रहा है। उठो बाहर चलो।
__ (इतना कहकर सुषमा हाथ पकड़कर उसे हॉल में ले गई और डेटॉल के द्वारा उसके हाथ का घाव साफ करने लगी।) सुषमा : बेटा ! बहुत दर्द कर रहा होगा ना? तुम रोओ मत। मैं अभी डॉ. को फोन करती हूँ।
(सुषमा ने डॉ. को फोन करके बुलाया तथा जब तक डॉ. न आए तब तक खुशबू के पास ही बैठी रही तथा उसे धीरज देती रही। इतने में डॉ. आ गया और खुशबू के घाव की ड्रेसिंग करने लगाडॉ. : देखिए, घाव ज्यादा होने के कारण तथा खून बहुत बह जाने के कारण इन्हें दस दिनों तक पानी