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बिगाड़ते हुए दूसरी सहेली ने अपनी बात शुरु की, “हे भगवान ! न जाने कैसे कर्म किए है जो ऐसी बहू गले पड़ी है। माँ बाप ने संस्कार तो दिए ही नहीं है, सात बजे तो महारानीजी उठती है और आठ बजे तक नीचे आती है। भगवान जाने कमरे में क्या करती है? फिर आठ बजे नीचे आकर सीधे भगवान के दर्शन कर रसोई घर में नाश्ता करने जाती है। केसर-बादाम वाला दूध और इलायची वाली कड़क चाय और नाश्ते में भी तरह-तरह की आईटम के बिना तो उसे चलता ही नहीं है। वहाँ से वह धर्म की पूछड़ी नहा-धोकर सीधे पूजा करने जाती है। कोई म.सा. हो तो व्याख्यान में जाएँ बिना तो वह रह ही नहीं सकती। तीन-चार घंटे बाद पूजारिन घर आती है और फिर बर्तन बजा-बजाकर बताने की कोशिश करती है कि मैं काम कर रही हूँ। फिर थाली लेकर बैठ जाती है, मिठाई और नमकीन के साथ भर पेट खाना खाने के बाद किसे नींद न आए ? खाने के बाद एक घंटा सो जाती है और उठते ही कड़क चाय पीकर काम करना न पड़े इसलिए सामायिक करने बैठ जाती है। उठकर बाज़ार में जाती है। और आते ही फिर खाना खाने बैठ जाती है। फिर शाम को मुझे मस्का मारने आ जाती. है। कहती है, कैसी हो मॉम ? तबीयत तो ठीक है ना? कोई भी काम हो तो मुझे जरुर कहना और फिर पहुँच जाती है मेरे बेटे के पास। पता नहीं क्या जादू कर दिया है मेरे बेटे पर कि वह भी उसकी ही तारीफ करता है।"
तब पहली सहेली ने जले पर नमक छिड़कते हुए कहा, “अरे रे ! यह तो बहुत बुरा हुआ। आजकल तो जमाना ही खराब है, अच्छा यह बताओ तुम्हारी बेटी कैसी है? ससुराल में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है ना?" बेटी का नाम सुनते ही उसके चेहरे पर चार चाँद खिल गये, वह कहने लगी - “अरे ! क्या कहुँ तुझसे, भवो-भव के पुण्य के फल के रुप में ऐसा ससुराल मिला है। खानदानी परिवार है, पैसेवाले है अतः नौकरों की कोई भी कमी नहीं हैं। मेरी बेटी आराम से आठ बजे तक उठती है और फिर भगवान के दर्शन कर सीधे नाश्ता करने जाती है। पैसे वाले है और बड़ा परिवार है। इसलिए इलायची वाली चाय, केसर बादाम वाला दूध और दो चार नाश्ते तो रोज ही बनते हैं। फिर वह नहाधोकर मंदिर जाती है। मैंने उसे कितने सुंदर संस्कार दिए है कि मंदिर गए बिना और गुरु महाराज के प्रवचन सुने बिना तो उसे चैन ही नहीं पड़ता। अतः तीन चार घंटे तो मंदिर में हो ही जाते हैं। वहाँ से रसोई में थोड़ी बहुत मदद करवाकर सब खाना खाने बैठते हैं। इतना बड़ा परिवार हैं, सब हिलमिल कर खाना खाते हैं। उसकी सासु तो उस पर इतनी खुश है कि कई बार तो अपने हाथों से खिलाती है। पैसे वाले है इसलिए रोज नए-नए मिष्टान्न बनते हैं। फिर दोपहर को कुछ भी काम नहीं होने से एक